साए

कहानी : साए
लेखक : – हिमांशु जोशी

हिमांशु जोशी (४ मई १९३५ – २३ नवम्बर २०१८) हिन्दी के ख्यातिलब्ध कहानीकार, उपन्यासकार और पत्रकार थे। उन्होंने अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से की थी। वे लंबे समय तक हिंदी पत्रिका ‘कादम्बिनी’ और ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ के संपादन से जुड़े रहे। बाद के दिनों में उन्होंने ‘वागर्थ’ के संपादन का भी दायित्व संभाला। देहावसान से कुछ समय पूर्व तक वे नार्वे से प्रकाशित पत्रिका ‘शांतिदूत’ के सलाहकार संपादक रहे।
हिमांशु जोशी का जन्म उत्तराखंड के चंपावत जिले के ‘जोसयूड़ा’ गांव में 4 मई 1935 में हुआ था। उनके बचपन का लंबा समय ‘खेतीखान’ गांव में बीता जहां से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद 1948 में वो नैनीताल चले आए जहां से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता ‘पूर्णानन्द जोशी’ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका संघर्ष जोशी के लिए प्रेरणा बना, जिसका असर उनके लेखन पर भी पड़ा।आजीविका की तलाश में हिमांशु जोशी ने दिल्ली आए और दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फिल किया। जोशी ने पत्र-पत्रिकाओं के संपादन के साथ-साथ दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए भी कार्य किया। उन्होने हिंदी फिल्मों के लिए भी लेखन कार्य किया। हिमांशु जोशी के उपन्यास ‘सु-राज’ पर आधारित फिल्म ‘सु-राज’ ने ‘इंडियन पेनोरमा’ के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भारतीय फिल्मों का प्रतिनिधित्व किया। उनके चर्चित उपन्यास ‘तुम्हारे लिए’ पर दूरदर्शन धारावाहिक बना। साथ ही‘तर्पण’ ‘सूरज की ओर’ आदि पर टेलीफिल्में बनी। जोशी ने आकाशवाणी पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के सुप्रसिद्ध बांग्ला उपन्यास ‘चरित्रहीन’ का रेडियो-सीरियल निर्देशित किया।

प्रकाशित कृतियाँ
उपन्यास
अरण्य
महासागर
छाया मत छूना मन
कगार की आग*
समय साक्षी है
तुम्हारे लिए
सुराज
कहानी संग्रह
अंततः तथा अन्य कहानियां
मनुष्य-चिह्न तथा अन्य कहानियां
जलते हुए डैने तथा अन्य कहानियां
रथ-चक्र
हिमांशु जोशी की चुनी हुई कहानियां
तपस्या तथा अन्य कहानियां
गन्धर्व-गाथा
चर्चित कहानियां
आंचलिक कहानियां
श्रेष्ठ प्रेम कहानियां
इस बार फिर बर्फ गिरी तो
नंगे पांवों के निशान
दस कहानियां
प्रतिनिधि लोकप्रिय कहानियां
इकहत्तर कहानियां
सागर तट के शहर
स्मृतियाँ
परिणति तथा अन्य कहानियां
कविता संग्रह
अग्नि-सम्भव
नील नदी का वृक्ष
एक आँख की कविता
वैचारिक संस्मरण
उत्तर-पर्व
आठवां सर्ग
साहित्य पर शोध
आजतक लगभग 35 शोधार्थियों ने हिमांशु जोशी के साहित्य पर शोध कर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की है। कई विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाएँ पाठ्यक्रम में भी पढाई जाती हैं। राजीव जोशी ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल से वर्ष 2010 में प्रो.देवसिंह पोखरिया के निर्देशन में हिमांशु जोशी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर वृहद शोध किया। उनका शोध ‘हिमांशु जोशी:रूप एक रंग अनेक’ नाम से आधारशिला प्रकाशन से ग्रन्थाकार रूप में प्रकाशित भी हो चुका है।

सम्मान
‘छाया मत छूना मन’, ‘अरण्य’, ‘मनुष्य चिह्न’ ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियां’ तथा ‘गन्धर्व कथा’ को ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ से पुरस्कार.
‘हिमांशु जोशी की कहानियां’ तथा ‘भारत रत्न : पं. गोविन्द बल्लभ पन्त’ को ‘हिंदी अकादमी’ दिल्ली का सम्मान.
‘तीन तारे’ राजभाषा विभाग बिहार सरकार द्वारा पुरस्कृत.
पत्रकारिता के लिए ‘केंद्रीय हिंदी संसथान’ (मानव संसाधन मंत्रालय) द्वारा ‘स्व. गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ से सम्मानित.
संगठनों एवं संस्थानों से सम्बन्ध
सदस्य : केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड, भारत सरकार
सदस्य : संचालन समित, हिन्दी अकादमी, दिल्ली

संक्षेप में :

 (क) तनु के लिए वर सहज रूप से मिल जाने का क्या कारण था ?

 उत्तर- तनु के लिए वर सहज रूप से मिल गया। वर की तलाश में अधिक भटकने की आवश्यकता न हुई । आसानी से खाता-पीता घर मिल गया। शायद इतना अच्छा घराना न मिलता लेकिन इस भ्रम से की कन्या का बाप अफ्रीका में सोना बटोर रहा है भाव खूब धन कमा रहा होगा। लड़की की शादी में धन की कोई कमी न रहेगी। इसलिए सब सहज हो गया।

(ख) अज्जू के लिए अफ्रीका से क्या-क्या आया था ?

उत्तर- अज्जू जब हाई स्कूल की परीक्षा में जिले भर में प्रथम आया। खेलों में भी प्रथम रहा। उसे बहुत-से सर्टिफ़िकेट और वज़ीफा मिला। उसने इनाम में मिली सारी वस्तुओं के फोटो अपने पिता जी को भेजे। पिता ने भी वहाँ से अज्जू के लिए एक कीमती कैमरा भेजा। गर्म सूट का कपड़ा भेजा। सुंदर-सी एक घड़ी भेजी और इसके साथ ही मर्मस्पर्शी एक लम्बा पत्र भी भेजा।

(ग ) अज्जू को अंत में पिता के जिगरी दोस्त ने भरे गले से क्या बताया ?

उत्तर-अज्जू को उसके पिता के जिगरी दोस्त ने बताया कि अज्जू के पिता तो उसके बचपन में ही मर गए थे। अज्जू के पिता ने और उसने सांझे में कारोबार शुरू किया था। उनके हिस्से का रुपया वह लगातार भेजे जा रहे थे। उन्हें वर्षों से अज्जू के आने का इंतजार था ताकि वह अपने पिता का कारोबार संभाल सके। उसने अपने दोस्त को जो वचन दिया था उसे पूरा कर दिया। उसके परिवार को बिखरने नहीं दिया ।

(घ) अज्जू को अंत में पिता के जिगरी दोस्त ने भरे गले से क्या बताया ?

उत्तर-अज्जू को उसके पिता के जिगरी दोस्त ने बताया कि अज्जू के पिता तो उसके बचपन में ही मर गए थे। अज्जू के पिता ने और उसने सांझे में कारोबार शुरू किया था। उनके हिस्से का रुपया वह लगातार भेजे जा रहे थे। उन्हें वर्षों से अज्जू के आने का इंतजार था ताकि वह अपने पिता का कारोबार संभाल सके। उसने अपने दोस्त को जो वचन दिया था उसे पूरा कर दिया। उसके परिवार को बिखरने नहीं दिया ।

विस्तार से :

  •  घर से जाने वाले पत्र में अज्जू और तनु के बारे में क्या-क्या लिखा था ?

उत्तर-घर से अफ़्रीका जाने वाले पत्र में अज्जू और तनु के बारे में लिखा था कि- बच्चे अपने पिता को बहुत याद करते हैं। उन्हें देखने भर को तरसते हैं। उनके द्वारा चिट्ठियों में दी गई सभी हिदायतों का पालन करते हैं। माँ को किसी किस्म का कष्ट नहीं देते है, कहना मानते है, पढ़ने में बहुत मेहनत करते हैं। अज्जू तो बड़ा होकर पापा की तरह अफ़्रीका जाना चाहता है। इंजीनियर बनना चाहता है। पापा के साथ खूब काम करना चाहता है। अब वह बारह वर्ष का हो गया है। वह छठी कक्षा में सबसे अव्वल आया है। मास्टर जी कहते हैं कि उसे वज़ीफा मिलेगा। उसी से अपनी आगे की पढ़ाई जारी रख सकता है। तनु अब अठारह वर्ष पार कर गई है। उसका विवाह करना है। कहीं कोई अच्छा-सा लड़का, अपनी जात-बिरादरी का मिले तो चल सकता है…. आदि बातें लिखी थीं

(ख) नैरोबी के अस्पताल से आए पत्र को पढ़कर पत्नी परेशान क्यों हो गई?

उत्तर- नैरोबी से आए पत्र को पढ़कर पत्नी इसलिए परेशान हो गई क्योंकि वह पत्र उसके पति का था। उसका पति बहुत बीमार था। रंगभेद के कारण उसे यूरोपियन अस्पताल में जगह मिलने में भी बहुत कठिनाई उठानी पड़ी थी। काफ़ी कुछ कहने 3 कहलवाने के बाद उसे अस्पताल में जगह मिल पाई थी किन्तु देरी के कारण रोग काबू से बाहर हो गया था। डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी। अब उसके बचने के आसार बहुत ही कम थे। ऐसे समय में कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या होगा। उसे अपने बच्चों और परिवार की चिन्ता हो रही थी।

(ग ) वृद्ध व्यक्ति का चरित्र चित्रण कीजिए ।

उत्तर- कहानी में वृद्ध व्यक्ति का चरित्र एक ईमानदार और अच्छे मित्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वृद्ध व्यक्ति मित्रता का सच्चा और जीता जागता उदाहरण है। उसने अपने मरते मित्र को उसके परिवार का पालन-पोषण करने का जो वचन दिया था, वह उसे आजीवन निभाता है। वह नियमित रूप से मृत मित्र के घरवालों को रुपये भेजता था। तनु के विवाह के लिए रुपये, गहने तथा कपड़े भेजता है और भी समय-समय पर उपहार भेजता है। सांत्वना और दिलासा देने के पत्र निरंतर परिवार को लिखता रहा। परिवार और बच्चों को दुःख न हो इसके लिए उसने परिवार वालों से दोस्त की मृत्यु का दुखद समाचार नहीं बाँटा। दोस्त के बच्चों को अपने ही बच्चों के समान प्यार और स्नेह दिया। इस प्रकार सही अर्थों में वृद्ध व्यक्ति एक सच्चा मित्र, अच्छा इन्सान और विवेकशील व्यक्ति था ।

(घ) वृद्ध व्यक्ति ने अज्जू और उसके परिवार की देखभाल में क्या भूमिका निभाई और क्यों ?

उत्तर-वृद्ध व्यक्ति ने अज्जू और उसके परिवार की देखभाल में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह लगातार परिवार के सम्पर्क में रहा। उसने परिवार की प्रत्येक आवश्यकता का ध्यान रखा । समय-समय पर परिवार की धन आदि से सहायता की। पत्रों के माध्यम से जीवन जीने की प्रेरणा दी। तनु का

विवाह स्वदेश में ही करने की सलाह दी। उसके विवाह के लिए रुपये, गहने तथा कपड़े भी भेजें। बच्चों को सच्चाई न बताकर उन्हें एक सफल तथा जिम्मेदार व्यक्ति बनाया। कहानी के अंत में अज्जू जब अफ़्रीका पहुंचता है तो वह उसे अपने कारोबार में हाथ बंटवाने को कहता है और अपने मृत मित्र का सारा हिस्सा अज्जू को सौंप देता है। वृद्ध व्यक्ति ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि उसने अपने मृत मित्र को वचन दिया था, कि वह उसके परिवार का ध्यान रखेगा। परिवार को बिखरने नहीं देगा। 3

(ड)’साए’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-हिमांशु जोशी द्वारा रचित ‘साए’ नामक कहानी का शीर्षक सर्वथा उपयुक्त तथा सार्थक प्रतीत होता है, क्योंकि हम देखते हैं कि अफ्रीका के नैरोबी में जाकर जब दो मित्र सांझे में कारोबार करते हैं और जब एक मित्र का देहांत हो जाता है तो दूसरा मित्र उसके परिवार का एक साया बनकर उनको हर अवस्था में संरक्षण प्रदान करता है। वह अपने मित्र के परिवार को सभी कठिन परिस्थितियों में से एक पिता की तरह अपनी छत्र छाया प्रदान करता रहता है। उसके परिवार को इस बात का पता ही नहीं लगने देता कि उनके मुख्य सदस्य का देहांत हो चुका है। सच्चाई न बताकर बच्चों को एक सफल तथा जिम्मेदार व्यक्ति बनाता है वह अपने मित्र के परिवार को पूरा संरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था करता है।

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मेरे विचार……. दीपक की लौ आकार में भले ही छोटी हो, लेकिन उसकी चमक और रोशनी दूर तक जाती ही है। एक अच्छा शिक्षक वही है जिसके पास पूछने आने के लिए छात्र उसी प्रकार तत्पर रहें जिस प्रकार माँ की गोद में जाने के लिए रहते हैं। मेरे विचार में अध्यापक अपनी कक्षा रूपी प्रयोगशाला का स्वयं वैज्ञानिक होता है जो अपने छात्रों को शिक्षित करने के लिए नव नव प्रयोग करता है। आपका दृष्टिकोण व्यापक है आपके प्रयास सार्थक हैं जो अन्य अध्यापकों को भी प्रेरित कर सकते हैं… संयोग से कुछ ऐसी कार्ययोजनाओं में प्रतिभाग करने का मौका मिला जहाँ भाषा शिक्षण के नवीन तरीकों पर समझ बनी। इस दौरान कुछ नए साथियों से भी मिलना हुआ। उनसे भी भाषा की नई शिक्षण विधियों पर लगातार संवाद होता रहा। साहित्य में रुचि होने के कारण हमने अब शिक्षा से सम्‍बन्धित साहित्य पढ़ना शुरू किया। कोई बच्चा बहुत से लोकप्रिय तरीके से सीखता है तो कोई बच्चा अपने विशिष्ट तरीके से किसी विषय को ग्रहण करता है और अपने तरीके से उस पर अपनी समझ का निर्माण करता है। इसी सन्‍दर्भ में बच्चों के मनोविज्ञान को समझने की जरूरत है। मनोविज्ञान को मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों और व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में देखा जाता है। इसी नजरिये से शिक्षा मनोविज्ञान को भी क्लासरूम के व्यावहारिक परिदृश्य के सन्‍दर्भ में देखने की आवश्यकता है। यहाँ गौर करने वाली बात है, “स्कूल में बच्चों को पढ़ाते समय केवल कुछ बच्चों पर ध्यान देने से हम बच्चों का वास्तविक आकलन नहीं कर पाते कि वे क्या सीख रहे हैं? उनको किसी बात को समझने में कहाँ दिक्कत हो रही है? किस बच्चे को किस तरह की मदद की जरूरत है। किस बच्चे की क्या खूबी है। किस बच्चे की प्रगति सही दिशा में हो रही है। कौन सा बच्चा लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और उसे आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र रूप से पढ़ने और काम करने के ज़्यादा मौके देने की जरूरत है।” एक शिक्षक को बच्चों के आँसू और बच्चों की खुशी दोनों के लिए सोचना चाहिए। बतौर शिक्षक हम बच्चों के पठन कौशल , समझ निर्माण व जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण का निर्माण कर रहे होते हैं। अपने व्यवहार से बच्चों की जिंदगी में एक छाप छोड़ रहे होते हैं। ऐसे में हमें खुद को वक्‍त के साथ अपडेट करने की जरूरत होती है। इसके लिए निरन्‍तर पढ़ना, लोगों से संवाद करना, शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले भावी बदलावों को समझना बेहद जरूरी है। ताकि आप समय के साथ कदमताल करते हुए चल सकें और भावी नागरिकों के निर्माण का काम ज्यादा जिम्मेदारी और सक्रियता के साथ कर सकें। इस बारे में संक्षेप में कह सकते हैं कि बतौर शिक्षक हमें खुद भी लगातार सीखने का प्रयास जारी रखना चाहिए। आज के शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है। पुस्तक जहाँ पहले ज्ञान का प्रमाणिक स्रोत और संसाधन हुआ करता था आज वहाँ तकनीक के कई साधन मौजूद हैं। आज विद्‌यार्थी किताबों की श्याम-श्वेत दुनिया से बाहर निकलकर सूचना और तकनीक की रंग-बिरंगी दुनिया में पहुँच चुका है, जहाँ माउस के एक क्लिक पर उसे दुनिया भर की जानकारी दृश्य रूप में प्राप्त हो जाती है। एक शिक्षक होने के नाते यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि हम समय के साथ खुद को ढालें और शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुचारू रूप से गतिशील बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीक के साधनों का भरपूर प्रयोग करें। यदि आप अपनी कक्षा में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल करते हुए विद्‌यार्थी-केन्द्रित शिक्षण को प्रोत्साहित करते हैं तो आपकी कक्षा में शैक्षणिक वातावरण का विकास होता है और विद्‌यार्थी अपने अध्ययन में रुचि लेते हैं। यह ब्लॉग एक प्रयास है जिसका उददेश्य है कि इतने वर्षों में हिंदी अध्ययन तथा अध्यापन में जो कुछ मैंने सीखा सिखाया । उसे अपने विद्यार्थियों और मित्रों से साझा कर सकूँ यह विद्यार्थियों तथा हमारे बीच एक अखंड श्रृंखला का कार्य करेगा। मै अपनी ग़ैरमौजूदगी में भी अपने ज़रूरतमंद विद्यार्थियों के बहुत पास रहूँगा …… मेरा प्रयास है कि अपने विद्यार्थी समुदाय तथा कक्षा शिक्षण को मैं आधुनिक तकनीक से जोड़ सकूँ जिससे हर एक विद्यार्थी लाभान्वित हो सके …

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