कवि परिचय – रसखान (जन्म: १५४८ ई) कृष्ण भक्त कवि थे। उनका जन्म पिहानी, भारत में हुआ था। हिन्दी के कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे विट्ठलनाथ के शिष्य थे एवं वल्लभ संप्रदाय के सदस्य थे। रसखान को ‘रस की खान’ कहा गया है।
इनके काव्य में भक्ति, शृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और उनके सगुण और निर्गुण निराकार रूप दोनों के प्रति श्रद्धावनत हैं। रसखान के सगुण कृष्ण वे सारी लीलाएं करते हैं, जो कृष्ण लीला में प्रचलित रही हैं। यथा- बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला, प्रेम वाटिका, सुजान रसखान आदि। उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधि में इन असीमित लीलाओं को बखूबी बाँधा है। मथुरा जिले में महाबन में इनकी समाधि हैं| सैय्यद इब्राहिम रसखान के काव्य के आधार भगवान श्रीकृष्ण हैं। रसखान ने उनकी ही लीलाओं का गान किया है। उनके पूरे काव्य- रचना में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की गई है। इससे भी आगे बढ़ते हुए रसखान ने सुफिज्म ( तसव्वुफ ) को भी भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से ही प्रकट किया है। इससे यह कहा जा सकता है कि वे सामाजिक एवं आपसी सौहार्द के कितने हिमायती थे। उनके द्वारा अपनाए गए काव्य विषयों को तीन खण्डों में बाँटा गया है -कृष्ण- लीलाएँ, बाल- लीलाएँ,गोचरण लीलाएँ
हिंदी साहित्य में एक काल ऐसा भी आया जब कवियों ने केवल प्रभु – भक्ति को ही सृजन का विषय चुना । इसे आज हम भक्ति काल के नाम से जानते हैं । इसमें भी दो धाराएँ थीं –कृष्णभक्ति और रामभक्ति । रसखान कृष्णभक्ति के अनन्य कवियों में गिने जाते हैं ।
कवित
भक्त अपने आराध्य कृष्ण की झलक प्रत्यक्ष पाना चाहता है इसलिए कवि ने उनका गुण गान कर उनसे दर्शन देने के लिए गुहार लगाई है।
सवैया
कवि यह सोचकर अचंभित है कि जिन महाप्रतापी, महाजानी कृष्ण की एक झलक पाने को शेषनाग,गणेश, शिव, भास्कर इत्यादि भी महासाधना करते हैं, उन्हीं कृष्ण को गोपियाँ थोड़ी-सी छाछ के लिए नाच नचा रही है।
इस पाठ में सम्मिलित इन दो रचनाओं में रसखान गोकुल की बालाओं के कृष्ण प्रेम और कृष्ण – भक्ति की प्रशंसा करते नहीं थकते तो दूसरी और वे यह सोचकर हैरान भी हैं कि जिन महाप्रतापी , महाज्ञानी कृष्ण की एक झलक पाने के लिए इंद्र , नरेन्द्र , महेंद्र और तपस्वी क्या – क्या जतन नहीं करते , उसी कृष्ण को प्रेम में डूबी गोपियाँ थोड़ी – सी छाछ के लिए अपने इशारों पर नचाती फिरती हैं ।
चीर की चटक औ लटक नवकुण्डल की भौंह की मटक नेह आँखिन दिखाउ रे ।
मोहन सुजान , गुन – रूप के निधान फेरि बाँसुरी बजाइ तनु – तपन सिराउ रे ।
शब्दार्थ –
- चीर- वस्त्र , कपड़ा cloth
- चटक – चटकीला , भड़कीला bright
- नवकुंडल – कानों में पहना जानेवाला एक प्रकार का आभूषण earring
- मटक – मटकना , नखरा Mirtation
- नेह – प्रेम , प्यार affection
- सुजान – सयाने , चतुर clever
- निधान – खजाना , रखना , आश्रय treasure
- तनु – तन body
- तपन – ताप , प्रिय के विरह से उत्पन्न पीड़ा , कष्ट pain
- सिराउ – ठंडा होना , समाप्त होना to be over
अर्थ – भगवान श्री कृष्ण अपने वस्त्रों की चमक से और नए कुण्डलों को लटकाकर , अपनी भोहों को मटकाकर अर्थात नखरा दिखाकर प्रेम से आँखें दिखाते हैं । सयाने ( समझदार ) मोहन जो कि गुण और रूप के खजाने हैं वे अपनी सुरीली बाँसुरी बजाकर हमारे शरीर की जलन मिटा देते हैं ।
एहो बनवारी बलिहारी जाऊँ तेरी आजु मेरी कुंज आइ नेकु मीठी तान गाउ रे ।
नन्द के किसोर चितचोर मोरपंख वारे बंसी वारे साँवरे पियारे इत आउ रे ।
शब्दार्थ –
- सुरसहु – देवताओं का समूह group of gods
- कुंज पौधों या लताओं से ढंका हुआ स्थान grove
- नेकु- थोड़ा , जरा some
- चितचोर – चित्त चुरानेवाला , मनोहर one who delights the heart , charmer
- साँवरे – श्याम रंगवाला , कृष्ण title of Lord Krishna
- इत – इधर hither
अर्थ – हे बनवारी ! मैं आज आपके इस मनोहारी रूप पर न्योछावर होना चाहता हूँ । आप मेरे घर आकर कोई मीठी तान सुनाने की कृपा करें । नन्द के लाडले , मन को हरने वाले , मोरपंख को धारण करने वाले , बंशी वाले , श्याम रंग वाले प्यारे कृष्ण आप यहाँ आकर मुझे दर्शन दीजिए ।
सेस गनेस महेस दिनेस , सुरेसहु जाहि निरंतर गावै ।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड , अछेद अभेद सुबेद बताई ।
नारद से सुक व्यास रटें , पचि हारे तऊ पुनि पार न पाई ।
ताहि अहीर की छोहरियाँ , छछिया भरि छाछ पै नाच नचावै ॥
शब्दार्थ –
- सुवेद- चारों वेद four Vedas
- अनादि- जिसका कोई आरंभ न हो unereated , eternal
- अनंत – जिसका कोई अंत न हो endless
- अछेद – निष्कपट , जिसे भेदा न जा सके forthright
- ताहि – उसे , उसको him
- अहीर – cattleman
- छछिया -छाछ नापने या रखने का बरतन an earthen pot used to keep buttermilk
- छाछ – मट्ठा , दही से बना पेय पदार्थ butter – milk
अर्थ – शेष यानी शेषनाग , महेश यानी भगवान शिवजी , दिनेश यानी सूर्यदेव , सुरेश यानी इंद्रदेव यह सब देवता गण जिसकी पूजा करते हैं जिसको अनादि यानी जिसके उद्भव का , न अंत का पता है , जिसके खंड नही किए जा सकते हैं , जिस में छेद ना किए जा सकते हो , भेदना संभव नहीं है , ऐसा वेद बताते हैं | नारद , शुक और व्यास जैसे ऋषि मुनि इनके बारे में जानने का प्रयत्न करते हैं पर हार जाते हैं । नारद और व्यास जिनके नाम को तोते की तरह रटते हैं । दिन – रात उनके नाम का जाप करते हैं ऐसे श्री कृष्ण जी को अहीरों की लड़कियाँ थोड़ा – थोड़ा ( कटोरी – भर ) मक्खन दिखाकर नाचने को कहती हैं , वे नाचते भी हैं । उन्हीं कृष्ण को ग्वालों की छोरियां अर्थात गोपियां अंजलिभर छाछ का लालच देकर अपनी अँगलियों पर नाच नचाती फिरती है अर्थात भगवान अलभ्य होकर भी भक्त को सहज मिल जाते हैं ।
कुछ शब्दों में –
प्रश्न 1. कवित्त में किसको बुलाया जा रहा है ?
उत्तर – कवित्त में मुरलीधर भगवान श्रीकृष्ण को बुलाया जा रहा है ।
प्रश्न 2. कवित्त में साँवरे को किन नामों से बुलाया गया है ?
उत्तर – कवित्त में साँवरे को नन्दलाल , चितचोर , बंसीधर आदि नामों से बुलाया गया है ।
प्रश्न 3 . सवैया में कौन किसका गान कर रहा है ?
उत्तर – सवैया में कवि रसखान भगवान श्रीकृष्ण का गान कर रहे हैं ।
प्रश्न 4. छोहरियाँ से कवि का संकेत किस ओर है ?
उत्तर – छोहरियाँ से कवि का संकेत गोपियों की ओर है ।
अधिकतम शब्दों में –
प्रश्न 1. चितचोर किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – चितचोर भगवान कृष्ण को कहा गया है क्योंकि वे अपनी लुभावनी क्रीडाओं से सबका मन मोह लेते हैं । श्रीकृष्ण की मनमोहिनी छटा सभी पर ऐसा प्रभाव डालती है कि फिर वे सदा के लिए उनपर रीझते ही चले जाते हैं । भगवान का स्वरूप ही ऐसा मधुर हे कि जो सबको अपनी ओर खींच लेता है । ‘ कृष्ण ‘ नाम का अर्थ ही है आकर्षण करने वाला ।
प्रश्न 2. बाँसुरी बजाने से तन की तपन कैसे दूर हो सकती है ?
उत्तर – श्रीकृष्ण हमेशा बांसुरी को अपने को साथ लेकर चलते थ। बांसुरी उनकी शक्ति थी, जिससे वो प्रेम और शांति का संदेश फैलाते थे। श्रीकृष्ण की बाँसुरी के बजने से सबका मन उनकी और आकर्षित हो जाता है , उनकी सुरीली बाँसुरी सुनने से हमारे शरीर की जलन अर्थात समस्त विकार दूर हो जाते हैं ।
प्रश्न 3. कवि को ‘ नन्द के किसोर ‘ में क्या – क्या अच्छा लगता है ?
उत्तर – कृष्ण का मनमोहक चेहरा, अनुपम मुस्कान, बांसुरी और उनका नृत्य ऐसा था जिससे लोग आनंद में डूब जाते थे। कवि को नन्द के किसोर के वस्त्रों की चमक और नखरा दिखाना आदि अच्छा लगता है । प्रभु के दर्शन करने की अभिलाषा लिए कवि रसखान को श्रीकृष्ण के पीतांबर वस्त्र की चमक, कानों में धारण किये हुए नए कुंडलों का सौंदर्य और मनमोहक जादूई आँखों की भौहों का मटकाना बहुत अच्छा लगता है।
प्रश्न 4 वेर्दो में शक्ति को किन विशेषणों से संबोधित किया गया है ?
उत्तर – वेदों में शक्ति को अनादि , अनंत , अखण्ड , अछेद , अभेद आदि विशेषणों से संबोधित किया गया है ।
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