दूर रहने वाले अपने सबन्धियों अथवा मित्रों की कुशलता जानने के लिए तथा अपनी कुशलता का समाचार देने के लिए पत्र एक साधन है। इसके अतिरिक्त्त अन्य कार्यों के लिए भी पत्र लिखे जाते है।आजकल हमारे पास बातचीत करने, हाल-चाल जानने के अनेक आधुनिक साधन उपलब्ध हैं ; जैसे- टेलीफोन, मोबाइल फोन, ई-मेल, फैक्स आदि। प्रश्न यह उठता है कि फिर भी पत्र-लेखन सीखना क्यों आवश्यक है ? पत्र लिखना महत्त्वपूर्ण ही नहीं, अपितु अत्यंत आवश्यक है, कैसे? जब आप विद्यालय नहीं जा पाते, तब अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र लिखना पड़ता है। सरकारी व निजी संस्थाओं के अधिकारियों को अपनी समस्याओं आदि की जानकारी देने के लिए पत्र लिखना पड़ता है। फोन आदि पर बातचीत अस्थायी होती है। इसके विपरीत लिखित दस्तावेज स्थायी रूप ले लेता है।जिस प्रकार कुंजियाँ बक्स खोलती हैं, उसी प्रकार पत्र ह्रदय के विभित्र पटलों को खोलते हैं। मनुष्य की भावनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से भी होती हैं। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है।
पत्रलेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र- इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ़ करता है। व्यावहारिक जीवन में यह वह सेतु है, जिससे मानवीय सम्बन्धों की परस्परता सिद्ध होती है। अतएव पत्राचार का बड़ा महत्व है।
आधुनिक युग में पत्रलेखन को ‘कला’ की संज्ञा दी गयी है। पत्रों में आज कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही है। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। जिस पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्यबोध और अन्तरंग भावनाओं का अभिव्यंजन आवश्यक है।
एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होती, बल्कि उसका व्यक्तित्व भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते हैं। अतः पत्रलेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। लेकिन, इस प्रकार की अभिव्यक्ति व्यवसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक तथा साहित्यिक पत्रों में अधिक होती है।
पत्र-लेखन आधुनिक युग की अपरिहार्य आवश्यकता है। पत्र एक ओर सामाजिक व्यवहार के अपरिहार्य अंग हैं तो दूसरी और उनकी व्यापारिक आवश्यकता भी रहती है। पत्र लेखन एक कला है जो लेखक के अपने व्यक्तित्व, दृष्टिकोण एवं मानसिकता से परिचालित होती है। वैयक्तिक पत्राचार में जहां लेखकीय व्यक्तित्व प्रमुख रहता है, वहीं व्यापारिक और सरकारी पत्रों में वह विषय तक ही सीमित रहता है।
सामान्यतः पत्र दो वर्गों में विभक्त किए जा सकते हैं : (i) वैयक्तिक पत्र (ii) निरवयक्तिक पत्र।
वे पत्र जो वैयक्तिक सम्बन्धों के आधार पर लिखे जाते हैं,वैयक्तिक पत्र कहलाते हैं, जबकि निर्वैयक्तिक पत्रों के अन्तर्गत वे पत्र आते है जो व्यावसायिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु लिखे जाते हैं।
- सम्पादक के नाम पत्र
- आवेदन पत्र एवं प्रार्थना पत्र
- व्यापारिक पत्र
- शिकायती पत्र
- कार्यालयी पत्र
पत्र-लेखन की विशेषताएं : एक अच्छे पत्र में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए।
- पत्र में वैचारिक स्पष्टता का होना आवश्यक है।
- उनमें शब्द जाल, पाण्डित्य अथवा गोपनीयता का सहारा नहीं लेना चाहिए।
- जहां तक सम्भव हो पत्र में प्राप्तक्ता के वैचारिक स्तर के अनुरूप ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
- पत्र में कम शब्दों में अधिक बात कहने की प्रवर्ति होनी चाहिए।
- विचारों की अभिव्यक्ति में क्रमबद्धता का होना भी आवश्यक है।
- पत्र को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है कि उसमें विनम्रता,सहजता, शिष्टता एवं सरलता हो।
- पत्र को यथासम्भव सरल और बोधगम्य रखना चाहिए।
- पत्र में पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।
- प्रत्येक प्रकार के पत्र को लिखने का एक निश्चित प्रारूप होता है।
- पत्र लिखते समय इस प्रारूप का ध्यान रखना चाहिए।
- पत्र लेखक को पत्र में अपना पता अनिवार्य रूप से लिखना चाहिए तथा उसमें पत्र लिखने का दिनांक भी अंकित होना चाहिए।
- पत्र की भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए।
पत्र-लेखन के लिए आवश्यक बातें :
पत्र की भाषा दुरुह और दुर्बोध नहीं होनी चाहिए। पत्र भाव और विचारों का सम्प्रेषण माध्यम है, पाण्डित्य प्रदर्शन की क्रीडा स्थली नहीं है। इसलिए पत्र में सरल और सबोध भाषा का प्रयोग करना चाहिए। शब्द संयोजन से लेकर वाक्य विन्यास तक में किसी प्रकार की जटिलता न होना भाषा में सरलता और सुबोधता के लिए आवश्यक होता है। भाषा में जहाँ तक सम्भव हो, सामासिकता और आलंकारिकता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। पत्र में वाक्य अधिक लम्बे न हो और बात को छोटे छोटे वाक्यों में ही कहा जाना चाहिए। इससे पत्र की भाषा में शीघ्र और सरल ढंग से अर्थ सम्प्रेषण हो जाता है। लिखते समय विरामादि चिन्ह का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
आकार – जहाँ तक हो,पत्र का आकार संक्षिप्त होना चाहिए। सक्षिप्ति अच्छे पत्र का गुण है। अत पत्र में व्यर्थ के विवरणों से वचा जाना चाहिए। अतिशयोक्ति, पुनरुक्ति या वाग्जाल पत्र लेखन-कला को दीषपूर्ण बना दैता है।
क्रम – पत्र में जो बाते कही जानी है उनकी एक क्रम में व्यक्त किया जाना चाहिए वात को पहले लिखना चाहिए। उसळे बाद दूसरी गणि तरह सोच लेना चाहिए कि कौन सी बात प्रमख है, उसी पत्र में जो बातें कही जानी है उनको एक क्रम में व्यक्त किया जाना चाहिए। लिखने के पूर्व अच्छी तरह सोच लेना चाहिए कि कौन सी बात प्रमुख है, उसीबात को पहले लिखना चाहिए। उसके बाद दूसरी गौण बातें लिखी जानी चाहिए। इससे पत्र की भाषा में सरलता, सटीकता और मधुरता के साथ-साथ प्रभावान्विति का समावेश हो जायेगा। पत्र के पाठक तक लेखक के भाव-विचार यथातथ्य रूप में पहुंच जाएँ, उस पर अनुकूल प्रभाव पड़े यही पत्र की सफलता है और सार्थकता भी।
शिष्टता – चूँकि पत्र लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है और उसका प्रमाण भी है, इसलिए पत्र में शिष्टता और विनम्रता का निर्वाह करना चाहिए। पत्र में कभी कटु शब्दों का नहीं करना चाहिए, चाहे आपको अपना आक्रोश ही क्यों न व्यक्त करना हो। कठोर पना भी व्यक्त करनी हो तो भी मधर और शिष्ट भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। इससे पाठक पर पत्रलेखक के चरित्र, व्यक्तित्व और संस्कार का अच्छा प्रभाव पड़ता है।
लिखावट – लिखावट साफ, पढ़ने में आने लायक और जहाँ तक हो सके, सुन्दर होनी चाहिए।
ध्यान देने योग्य बातें :
- परीक्षार्थी को अपने पते के स्थान पर केवल परीक्षा भवन/कक्ष/हॉल ही लिन चाहिए।
- पत्र की समाप्ति पर अपना नाम न लिखकर अपना अनुक्रमांक अथवा अ, ब, स. या क, ख, ग आदि का प्रयोग करना चाहिए।
- पत्र समाप्ति के बाद यदि लगे कि कोई बात छूट गयी है तो अन्त में “पुनश्श” लिखकर संक्षेप में उसको लिख देना चाहिए।
- बड़ों या छोटों को, मित्रों या परिचितों को सम्बोधित करने के लिए अभिवादन या आशीर्वचन के लिए और अन्त में समाप्ति के पूर्व जिन समापन सूचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वे निम्रांकित हैं-
पत्र के भाग : सामान्यतः किसी भी पत्र के अग्रलिखित भाग होते हैं-
- प्रेषक का नाम व पता
- फोन, फैक्स, पेजर, टेलेक्स नम्बर
- दिनांक
पत्र में इन तीनों को ऊपर लिखा जाता है। सामान्य रीति पत्र के दायीं ओर लिखने की है, पर कभी-कभी नाम व पद बायीं ओर और शेष भाग दायीं ओर भी लिखा जाता है। सरकारीपत्र हो तो सबसे ऊपर पत्र संख्या और कार्यालय का नाम लिखा जाता है।
- सम्बोधन
- अभिवादन
- विषय से सम्बन्धित पत्र का मूलभाग
- समापन सूचक शब्द या स्वनिर्देश
- हस्ताक्षर
- संलग्रक (विशेषतः सरकारी पत्रों में) बायीं ओर लिखते हैं।
- पुनश्च-यदि कोई छुटी हुई खास बात लिखनी हो तो सबसे नीचे लिखा जाता है और हस्ताक्षर किये जाते हैं।
पत्र प्रारम्भ : सामान्यतः पत्र का प्रारम्भ निम्नांकित वाक्यों से किया जाता है-
- आपका पत्र प्राप्त हुआ
- बहुत दिन से आपका कोई समाचार नहीं मिला
- कितने दिन हो गये, आपने खैर खबर नहीं दी/ भेजी
- आपका कृपा-पत्र पाकर धन्य हुआ
- मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझे पत्र लिखा
- यह जानकर/पढ़कर हार्दिक प्रसन्नता हुई
- अत्यन्त शोक के साथ लिखना सूचित करना पड़ रहा है कि
- देर से उत्तर देने के लिएमैं क्षमा प्रार्थी हूँ
- आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि
- आपका पत्र पाकर आश्चर्य हुआ कि
- सर्वप्रथम मैं आपको अपना परिचय दे दू ताकि
- मैं आपके पत्र की आशा छोड़ चुका था/चुकी थी
- आपको एक कष्ट देने के लिए पत्र लिख रहा है/ रही हैं।
- आपसे मेरी एक प्रार्थना है कि
- सविनय निवेदन है कि
पत्र समापन : पत्र पूरा होने के बाद अन्त में सामान्यत निम्नांकित वाक्यों का प्रयोग किया जाता है-
- पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में
- पत्रोत्तर की प्रतीक्षा रहेगी
- लौटती डाक से उत्तर अपेक्षित है।
- आशा है आप सपरिवार स्वस्थ एवं सानन्द होगे।
- यथाशीघ्र उत्तर देने की कृपा करें।
- शेष मिलने पर।
- शेष अगले पत्र में।
- शेष फिर कभी।
- शेष कुशल है।
- यदा-कदा पत्र लिखकर समाचार देते रहें
- आशा है आपको यह सब स्मरण रहेगा
- मैं सदा/आजीवन आभारी रहूँगा
- सधन्यवाद
- त्रुटियों के लिए क्षमा।
- अब और क्या लिखूँ
- कष्ट के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
पत्रों के प्रकार –
मुख्य रूप से पत्रों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
(1) औपचारिक-पत्र
(2) अनौपचारिक-पत्र
औपचारिक और अनौपचारिक पत्रों में अंतर
औपचारिक पत्र (Formal Letter )
यह पत्र उन्हें लिखा जाता है जिनसे हमारा कोई निजी संबंध ना हो। औपचारिक पत्र लेखन में मुख्य रूप से संदेश, सूचना एवं तथ्यों को ही अधिक महत्व दिया जाता है। व्यवसाय से संबंधी, प्रधानाचार्य को लिखे प्रार्थना पत्र, आवेदन पत्र, सरकारी विभागों को लिखे गए पत्र, संपादक के नाम पत्र आदि औपचारिक-पत्र कहलाते हैं। औपचारिक पत्रों की भाषा सहज और शिष्टापूर्ण होती है। इन पत्रों में केवल काम या अपनी समस्या के बारे में ही बात कही जाती है।
अनौपचारिक पत्र (Informal Letter )
यह पत्र उन लोगों को लिखा जाता है जिनसे हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध रहता है। अनौपचारिक पत्र अपने परिवार के लोगों को जैसे माता-पिता, भाई-बहन, सगे-सम्बन्धिओं और मित्रों को उनका हालचाल पूछने, निमंत्रण देने और सूचना आदि देने के लिए लिखे जाते हैं। इन पत्रों में भाषा के प्रयोग में थोड़ी ढ़ील की जा सकती है। इन पत्रों में शब्दों की संख्या असीमित हो सकती है क्योंकि इन पत्रों में इधर-उधर की बातों का भी समावेश होता है।अनौपचारिक पत्र उन व्यक्तियों को लिखे जाते हैं, जिनसे पत्र लेखक का व्यक्तिगत या निजी सम्बन्ध होता है। अपने मित्रों, माता-पिता, अन्य सम्बन्धियों आदि को लिखे गये पत्र अनौपचारिक-पत्रों के अंतर्गत आते है। अनौपचारिक पत्रों में आत्मीयता का भाव रहता है तथा व्यक्तिगत बातों का उल्लेख भी किया जाता है। इस तरह के पत्र लेखन में व्यक्तिगत सुख-दुख का ब्योरा एवं विवरण के साथ व्यक्तिगत संबंध को उल्लेख किया जाता है।
- बधाई पत्र
- शुभकामना पत्र
- निमंत्रण पत्र
- विशेष अवसरों पर लिखे गये पत्र
- सांत्वना पत्र
- किसी प्रकार की जानकारी देने के लिए
- कोई सलाह आदि देने के लिए
अनौपचारिक पत्र का प्रारुप –
पत्र भेजने वाले (प्रेषक) का पता :
दिनाँक :
संबोधन – प्रिय भाई क्षितिज ,
अभिवादन – मधुर स्मृति / सस्नेह नमस्कार
विषयवस्तु – (तीन या चार अनुच्छेद में )
पहला अनुच्छेद : मित्र तथा परिवार की कुशलता पूछना…
दूसरा अनुच्छेद : पत्र लिखने का कारण
तीसरा अनुच्छेद : पुन: घरवालों को यथोचित सम्मान देना …
तुम्हारा भाई
इच्छित
औपचारिक पत्र के प्रकार और उनका प्रारूप :
(1) प्रार्थना-पत्र – जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे ‘प्रार्थना-पत्र’ कहलाते हैं। ये अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन के लिए लिखे जाते हैं।
(2) कार्यालयी-पत्र – जो पत्र कार्यालयी काम-काज के लिए लिखे जाते हैं, वे ‘कार्यालयी-पत्र’ कहलाते हैं। ये सरकारी अफसरों या अधिकारियों, स्कूल और कॉलेज के प्रधानाध्यापकों और प्राचार्यों को लिखे जाते हैं।
(3) व्यवसायिक पत्र – व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, उन्हें ‘व्व्यवसायिक पत्र’ कहते हैं।
औपचारिक पत्र लंबे नहीं लिखे जाने चाहिए, क्योंकि पत्र, चाहे वह व्यापार से संबंधित हो या शासकीय कामकाज से, पढ़ने वाले व्यक्ति के पास बहुत अधिक समय नहीं होता। इसलिए अपनी बात को संक्षेप में तथा स्पष्ट भाषा में कहना जरूरी होता है। ऐसे पत्र में प्रमुख मुद्दों का उल्लेख होता है जिनका विस्तार से विश्लेषण नहीं किया जाता है। इसलिए ऐसे पत्र का आकार एक या अधिक से अधिक दो टंकित प्रश्नों से ज्यादा नहीं होना चाहिए। पत्र में कही गई बात में यथात्यता और उचित क्रम निर्वाह भी जरूरी है ताकि पढ़ने वाला उसे सहजता से समझ सके।
पत्र में यदि किसी पिछली बात या पिछले पत्रका हवाला दिया गया है तो उसकी तारीख, संख्या, विषय आदि सही होने चाहिए। छोटी सी गलती होने पर समय श्रम तथा धन की हानि हो सकती है। यदि ऐसी गलती व्यावसायिक होती है तो इसका असर उस कंपनी या फर्म की साख पर पड़ सकता है और यदि आवेदन पत्र या किसी अनुरोध पत्र में होती है तो पत्र लिखने वाले को नुकसान उठाना पड़ सकता है। प्रशासनिक मामलों में तो इस तरह की गलती से गंभीर कानूनी समस्या भी पैदा हो सकती हैं।।
औपचारिक पत्र में निजीपन की गुंजाइश नहीं होती। इसकी भाषा में अटपटापन या रूखापन भी होना चाहिए की पढ़ने वाले को स्पष्ट या बुरी लगे। ऐसे पत्रों में सहज विनम्र भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए।
औपचारिक पत्र के लिए जरूरी तथ्य –
- आवेदन पत्र की शुरुआत बायीं और ऊपर से की जाती है। सबसे पहले सेवा में लिखा जाता है।
- फिर अगली पंक्ति में उस अधिकारी का पदनाम और उससे फिर अगली पक्ति में पता लिखा जाता है।
- संबोधन के रूप में महोदय शब्द का प्रयोग होता है।
- यदि आवेदन पत्र नौकरी के लिए है तो नौकरी के विज्ञापन का संदर्भ दिया जाता है, जिसमें विज्ञापन की तारीख और संख्या आदि का उल्लेख होता फिर मुख्य विषय की शुरुआत निवेदन के रूप में की जाती है। अतः वाक्य अक्सर ‘निवेदन है’ शब्दों से शुरू किया जाता है।
- फिर पत्र के अंत में शिष्टाचार के रूप में ‘धन्यवाद सहित’, ‘सधन्यवाद’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- अंत में स्वनिर्देश के रूप में दायीं ओर ‘भवदीय’, ‘प्रार्थी’, ‘विनीत’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- फिर लिखने वाला अपना हस्ताक्षर करता है। तथा अपना पता लिखता है।
- यहां पर बायीं और तारीख लिखी जाती है।
- अनौपचारिक या व्यक्तिगत पत्र में लिखने वाले का पता और तारीख सबसे दाई और लिखी जाती है।
- उसके बाद उसके बाद बायीं और पत्र पाने वाले के लिए संबोधन होता है।
- यह संबोधन बड़ा ही व्यक्तिगत होता है।
- यानी माता-पिता या अन्य सामान्य व्यक्तियों के लिए अक्सर ‘आदरणीय’, ‘माननीय, विशेषण’ का प्रयोग होता है।
- फिर भी अभिवादन के रूप में नमस्कार,प्रणाम,स्नेह ,शुभार्शीवाद आदि शब्दों का प्रयोग होता है। अभिवादन पत्र पाने वाले की आयु लिखने वाले से उसके संबंध आदि के अनुसार होता है।
- पत्र का आरंभ कुशलता के समाचार या पत्र पाने के संदर्भ, पत्र पाने की सूचना या ऐसे हीं किसी अन्य बातों बातों से होता है। फिर पत्र का मुख्य विषय लिखा जाता है।
- व्यक्तिगत पत्र के मुख्य विषय में आकार संबंधी कोई बंदिश नहीं होती।
- यह पत्र कुछ पंक्तियों का हो सकता है और कुछ पृष्ठों का भी हो सकता है।
- पत्र के अंत में लिखने वाला व्यक्ति अपने हस्ताक्षर करता है। हस्ताक्षर से से पहले स्वनिर्देश लिखता है। यह सब यह स्वनिर्देश ‘आपका/आपकी” या ‘तुम्हारा/तुम्हारी के रूप में लिखा जाता है।
- सरकारी पत्रों में भवदीय का उपयोग होता है।
- यदि कोई बात पत्र लिखते समय छूट जाती है या लिखने वाले को बाद में कुछ ध्यान आती है तो पुन्च (यानी बाद में जोड़ा गया अंश) लिखकर उस बात को जोड़ दिया जाता है।
औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें :
- औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं।
- इस प्रकार के पत्रों में नपी-तुली भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशलक्षेम आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।
- पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
- पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।
- यदि आप कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र लिख रहे हैं, तो कक्षा अथवा परीक्षा भवन (अपने पता के स्थान पर) तथा क० ख० ग० (अपने नाम के स्थान पर) लिखना चाहिए।
- पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए के साथ मिलाकर लिखें।
- पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए ताकि तारतम्यता बनी रहे।
- प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।
औपचारिक-पत्र के अंग :
(1) पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता।
(2) विषय- जिसके बारे में पत्र लिखा जा रहा है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों में लिखें।
(3) संबोधन- जिसे पत्र लिखा जा रहा है- महोदय, माननीय आदि।
(4) विषय-वस्तु-इसे दो अनुच्छेदों में लिखें :
पहला अनुच्छेद – अपनी समस्या के बारे में लिखें।
दूसरा अनुच्छेद – आप उनसे क्या अपेक्षा रखते हैं, उसे लिखें तथा धन्यवाद के साथ समाप्त करें।
(5) हस्ताक्षर व नाम- भवदीय/भवदीया के नीचे अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें।
(6) प्रेषक का पता- शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, पिनकोड।
(7) दिनांक।
औपचारिक पत्र –
प्रेषक का पता:
दिनाँक:
पत्र प्राप्तकर्ता अधिकारी की उपाधि :
पत्र प्राप्तकर्ता अधिकारी का पता :
विषय:
संबोधन:
पत्र का मुख्य विषय (दो अनुच्छेदों में) :
धन्यवाद
भवदीय
प्रेषक का नाम
पत्र लिखने के लिए कुछ आवश्यक बातें :
(1) जिसके लिए पत्र लिखा जाये, उसके लिए पद के अनुसार शिष्टाचारपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
(2) पत्र में हृदय के भाव स्पष्ट रूप से व्यक्त होने चाहिए।
(3) पत्र की भाषा सरल एवं शिष्ट होनी चाहिए।
(4) पत्र में बेकार की बातें नहीं लिखनी चाहिए। उसमें केवल मुख्य विषय के बारे में ही लिखना चाहिए।
(5) पत्र में आशय व्यक्त करने के लिए छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
(6) पत्र लिखने के पश्चात उसे एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए।
(7) पत्र प्राप्तकर्ता की आयु, संबंध, योग्यता आदि को ध्यान में रखते हुए भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
(8) अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए।
(9) पत्र में लिखी वर्तनी-शुद्ध व लेख-स्वच्छ होने चाहिए।
(10) पत्र प्रेषक (भेजने वाला) तथा प्रापक (प्राप्त करने वाला) के नाम, पता आदि स्पष्ट रूप से लिखे होने चाहिए।
(11) पत्र के विषय से नहीं भटकना चाहिए यानी व्यर्थ की बातों का उल्लेख नहीं करना चाहिए।
अच्छे पत्र की विशेषताएँ :
(1 ) सरल भाषाशैली :- पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। ये उपयुक्त, सटीक, सरल और मधुर हों। सारी बात सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिखनी चाहिए। बातों को घुमा-फिराकर लिखना उचित नहीं।
(2) विचारों की सुस्पष्ठता :- पत्र में लेखक के विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। कहीं भी पाण्डित्य-प्रदर्शन की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। बनावटीपन नहीं होना चाहिए। दिमाग पर बल देनेवाली बातें नहीं लिखी जानी चाहिए।
(3) संक्षेप और सम्पूर्णता:- पत्र अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए। वह अपने में सम्पूर्ण और संक्षिप्त हो। उसमें अतिशयोक्ति, वाग्जाल और विस्तृत विवरण के लिए स्थान नहीं है। इसके अतिरिक्त, पत्र में एक ही बात को बार-बार दुहराना एक दोष है। पत्र में मुख्य बातें आरम्भ में लिखी जानी चाहिए। सारी बातें एक क्रम में लिखनी चाहिए। इसमें कोई भी आवश्यक तथ्य छूटने न पाय। पत्र अपने में सम्पूर्ण हो, अधूरा नहीं। पत्रलेखन का सारा आशय पाठक के दिमाग पर पूरी तरह बैठ जाना चाहिए। पाठक को किसी प्रकार की लझन में छोड़ना ठीक नहीं।
(4) प्रभावान्वित:- पत्र का पूरा असर पढ़नेवाले पर पड़ना चाहिए। आरम्भ और अन्त में नम्रता और सौहार्द के भाव होने चाहिए।
(5) बाहरी सजावट:- पत्र की बाहरी सजावट से तात्पर्य यह है कि लिखावट सुन्दर, साफ और पुष्ट हो; विरामादि चिह्नों का प्रयोग यथास्थान किया जाय; शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद और अन्त अपने-अपने स्थान पर क्रमानुसार होने चाहिए; पत्र की पंक्तियाँ सटाकर न लिखी जायँ ।
mind-blowing writing work…very much helpful for my class.please keep posting such applaudable work….all the best
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