गिरिधर की कुंडलियाँ

गिरिधर कविराय

(जन्म: संवत 1770)

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के अनुसार- नाम से गिरिधर कविराय भाट जान पड़ते हैं । शिव सिंह ने उनका जन्म – संवत 1770 दिया है, जो सम्भवत: ठीक है। इस हिसाब से उनका कविता-काल संवत 1800 के उपरान्त ही माना जा सकता है। उनकी नीति की कुण्डलियाँ ग्राम-ग्राम में प्रसिद्‌ध हैं।

गिरिधर कवि ने नीति, वैराग्य और अध्यात्म को ही अपनी कविता का विषय बनाया है। जीवन के व्यावहारिक पक्ष का इनके काव्य में प्रभावशाली वर्णन मिलता है। वही काव्य दीर्घजीवी हो सकता है जिसकी पैठ जनमानस में होती है।

ऐसा अनुमान है कि ये पंजाब के रहने वाले थे, किन्तु बाद में इलाहाबाद के आसपास आकर रहने लगे। इन्होंने कुंडलियों में ही समस्त काव्य रचा।  गिरधर कविराय की कुंडलियां अवधी और पंजाबी भाषा में हैं। ये अधिकतर नीति विषयक हैं। गिरिधर कविराय ग्रंथावली में इनकी पांच सौ से अधिक कुडलियाँ संकलित

कुंडलियाँ 

 गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ दैनिक जीवन की बातों से संबद्‌ध हैं और सीधी-सरल भाषा में कही गई हैं। वे प्राय: नीतिपरक हैं जिनमें परंपरा के अतिरिक्त अनुभव का पुट भी है। कुछ कुंडलियों में ‘साईं’ छाप मिलता है जिनके संबंध में धारण है कि यह उनकी पत्नी की रचना है।

कठिन शब्दार्थ 

छाँडि – छोड़कर
नारी – नाली
कमरी – काला कंबल
बकुचा – छोटी गठरी
मोट – गठरी
दमरी – दाम, मूल्य
सहस – हजार
काग – कौवा
पतरो – पतला
बेगरजी – नि:स्वार्थ
विरला – बहुत कम मिलनेवाला
बयारि – हवा
धाम – धूप
पाती – पत्ती
जर – जड़
दाय – रुपया – पैसा
तऊ – फिर भी
बानी – आदत
पानी – सम्मान


भावार्थ

कुंडली – १

लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिये संग।
गहरि, नदी, नारी जहाँ, तहाँ बचावै अंग॥
जहाँ बचावै अंग, झपटि कुत्ता कहँ मारै।
दुश्मन दावागीर, होयँ तिनहूँ को झारै॥
कह गिरिधर कविराय सुनो हो धूर के बाठी॥
सब हथियार न छाँड़ि, हाथ महँ लीजै लाठी॥



कवि गिरिधर कविराय ने उपर्युक्त कुंडली में लाठी के महत्त्व की ओर संकेत किया है। हमें  हमेशा अपने पास लाठी रखनी चाहिए क्योंकि संकट के समय वह हमारी सहायता करती है। गहरी नदी और नाले को पार करते समय मददगार साबित होती है। यदि कोई कुत्ता हमारे ऊपर झपटे तो लाठी से हम अपना बचाव कर सकते हैं। जब दुश्मन अपना अधिकार दिखाकर हमें धमकाने की कोशिश करे तब लाठी के द्‌वारा हम अपना बचाव कर सकते हैं।  अत: कवि पथिक को संकेत करते हुए कहते हैं कि  हमें सभी हथियारों को त्यागकर सदैव अपने हाथ में लाठी रखनी चाहिए क्योंकि वह हर संकट से उबरने में हमारी मदद कर सकता है।

कुंडली – २

कमरी थोरे दाम की,बहुतै आवै काम।

खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥

उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।

बकुचा बाँधे  मोट, राति को झारि बिछावै॥

कह गिरिधर कविराय, मिलत है थोरे दमरी।

सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

उपर्युक्त कुंडली में गिरिधर कविराय ने कंबल के महत्त्व को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है। कंबल बहुत ही सस्ते दामों में मिलता है परन्तु वह हमारे ओढने, बिछाने आदि सभी कामों में आता है। वहीं दूसरी तरफ मलमल की रज़ाई देखने में सुंदर और मुलायम होती है किन्तु यात्रा करते समय उसे साथ रखने में बड़ी परेशानी होती है। कंबल को किसी भी तरह बाँधकर उसकी छोटी-सी गठरी बनाकर अपने पास रख सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर रात में उसे बिछाकर सो सकते हैं। अत: कवि कहते हैं कि भले ही कंबल की कीमत कम है परन्तु  उसे साथ रखने पर हम सुविधानुसार समय-समय पर उसका प्रयोग कर सकते हैं।

कुंडली – ३

गुन के गाहक सहस, नर बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, शब्द सुनै सब कोय॥
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ के एक रंग, काग सब भये अपावन॥
कह गिरिधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के॥

 



प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने मनुष्य के आंतरिक गुणों की चर्चा की है। मनुष्य की पहचान उसके गुणों से ही होती है, गुणी व्यक्ति को हजारों लोग स्वीकार करने को तैयार रहते हैं लेकिन बिना गुणों के समाज में उसकी कोई मह्त्ता नहीं। जिस प्रकार कौवा और कोयल रूप-रंग में समान होते हैं किन्तु दोनों की वाणी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है। कोयल की वाणी मधुर होने के कारण वह जनमानस में प्रिय है। वहीं दूसरी ओर कौवा अपनी कर्कश वाणी के कारण सभी को अप्रिय है। अत: कवि कहते हैं कि  हमें अपने मन में इस बात की गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि इस संसार में गुणहीन व्यक्ति का कोई महत्त्व नहीं होता है।

कुंडली – 

साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।
जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥ 

प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने समाज की रीति पर व्यंग्य किया है तथा स्वार्थी मित्र के संबंध में बताया है। कवि कहते हैं कि इस संसार में सभी मतलबी हैं। बिना स्वार्थ के कोई किसी से मित्रता नहीं करता है। जब तक मित्र के पास धन-दौलत है तब तक सारे मित्र उसके आस-पास घूमते हैं। मित्र के पास जैसे ही धन समाप्त हो जाता है सब उससे मुँह मोड़ लेते हैं। संकट के समय भी उसका साथ नहीं देते हैं। अत: कवि कहते हैं कि संसार का यही नियम है कि बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता।

कुंडली – 

रहिए लटपट काटि दिन, बरु घामे माँ सोय।

छाँह न बाकी बैठिये, जो तरु पतरो होय॥

जो तरु पतरो होय, एक दिन धोखा देहैं।

जा दिन बहै बयारि, टूटि तब जर से जैहैं॥

कह गिरिधर कविराय छाँह मोटे की गहिए।

पाती सब झरि जायँ, तऊ छाया में रहिए॥

उपर्युक्त कुंडली में गिरिधर कविराय ने अनुभवी व्यक्ति की विशेषता बताई है। कवि के अनुसार हमें पतले पेड़ की छाया में कभी नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वह आँधी-तूफ़ान के आने  पर टूट कर हमारे प्राण संकट में भी डाल सकता है। इसलिए हमें सदैव मोटे और पुराने पेड़ों की छाया में आराम करना चाहिए क्योंकि उसके पत्ते झड़ जाने के बावज़ूद भी वह हमें पूर्ववत्‌ शीतल छाया प्रदान करते हैं। अत: हमें अनुभवी व्यक्तियों की संगति में रहना चाहिए क्योंकि अनुभवहीन व्यक्ति हमें पतन की ओर ले जा सकता है।

कुंडली – 

पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।

दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥

यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।

पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥

कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।

चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥

प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने परोपकार का महत्त्व बताया है। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार नाव में पानी बढ़ जाने पर दोनों हाथों से पानी बाहर निकालने का प्रयास करते हैं अन्यथा नाव के डूब जाने का भय रहता है। उसी प्रकार घर में ज्यादा धन-दौलत आ जाने पर हमें उसे परोपकार में लगाना चाहिए। कवि के अनुसार अच्छे और परोपकारी व्यक्तियों की यही विशेषता है कि वे धन का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करते हैं और

समाज में अपना मान- सम्मान बनाए रखते हैं।

कुंडली – 

राजा के दरबार में, जैये समया पाय।

साँई तहाँ न बैठिये, जहँ कोउ देय उठाय॥

जहँ कोउ देय उठाय, बोल अनबोले रहिए।

हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए॥

कह गिरिधर कविराय समय सों कीजै काजा।

अति आतुर नहिं होय, बहुरि अनखैहैं राजा॥

प्रस्तुत कुंडली में गिरिधर कविराय ने बताया है कि हमें अपने सामर्थ्य अनुसार ही आचरण करना चाहिए। कवि कहते हैं कि जिस प्रकार राजा के दरबार में हमें समय पर ही जाना चाहिए और ऐसी जगह नहीं बैठना चाहिए जहाँ से कोई हमें उठा दे।

 बिना पूछे किसी प्रश्न का जवाब नहीं देना चाहिए और बिना मतलब के हँसना भी नहीं चाहिए। हमें अपना हर कार्य समयानुसार ही करना चाहिए। जल्दीबाज़ी में ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे राजा नाराज़ हो जाएँ।

अवरतणों पर आधारित प्रश्नोत्तर

(1)

साँई सब संसार में, मतलब का व्यवहार।

जब लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥

तब लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।

पैसा रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥

कह गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।

करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥ 

प्रश्न

(i) कवि के अनुसार इस संसार में किस प्रकार का व्यवहार प्रचलित है ?

(ii) व्यक्ति के पास रुपया-पैसा न रहने पर मित्रों के व्यवहार में क्या परिवर्तन आ जाता

(iii) “करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई” – पंक्ति द्‌वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है ?

(iv) निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए –

       गाँठ, बेगरजी, विरला, यार, प्रीति, जगत।

उत्तर

(i) कवि के अनुसार यह संसार मोह-माया से भरा है जिसमें धन-दौलत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस संसार में रुपए-पैसे की पूजा होती है और इनसान उसके पीछे भागता फिरता है। इस संसार में सभी का व्यवहार मतलब से भरा है और बिना स्वार्थ के कोई किसी से मित्रता नहीं करता है

(ii) इस संसार में धन-दौलत ही सब कुछ है। उसके बगैर किसी भी इनसान की कोई कीमत नहीं है। जब तक व्यक्ति के पास रुपया- पैसा है तब तक सभी आपके शुभचिंतक बने रहते हैं लेकिन जब आपके पास धन-दौलत समाप्त हो जाता है तब मुसीबत पड़ने पर कोई भी आपका साथ नहीं देता है। यही इस संसार की रीति है।

(iii) बिना स्वार्थ के कोई किसी से मित्रता नहीं करता है। जब तक मित्र के पास धन-दौलत है तब तक सारे मित्र उसके आस-पास घूमते हैं। मित्र के पास जैसे ही धन समाप्त हो जाता है सब उससे मुँह मोड़ लेते हैं। संकट के समय भी उसका साथ नहीं देते हैं। अत: कवि कहते हैं कि इस संसार का यही नियम है कि बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता। संसार से नि:स्वार्थ प्रेम की भावना खत्म होती जा रही है और लोगों में एक-दूसरे के प्रति अपनत्व और प्रेम का भाव भी धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है। कोई विरला ही होता है जिसके मन में बिना किसी स्वार्थ के दूसरों के लिए प्रेम की भावना होती है।

(iv)  गाँठ – जेब

       बेगरजी – जिसमें किसी प्रकार का स्वार्थ न हो

       विरला – बहुत कम मिलनेवाला

       यार – मित्र, दोस्त

       प्रीति – प्रेम, प्यार

       जगत – संसार

(2)

पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥

प्रश्न

(i) कवि के अनुसार नाव में पानी तथा घर में दाम बढ़ने पर क्या करना चाहिए ?

(ii) ” शीश आगे धर दीजै” – कवि ने ऐसा किस संदर्भ में कहा है ?

(iii) कवि ने बड़ों की किस वाणी का उल्लेख किया है ?

(iv) क्या गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ आज भी प्रासंगिक हैं ?

उत्तर

(i) नाव में पानी बढ़ जाने पर दोनों हाथों से पानी बाहर निकालने का प्रयास करते हैं नहीं तो नाव के डूब जाने का खतरा बना रहता है। उसी प्रकार घर

में ज्यादा धन-दौलत आ जाने पर हमें उसे परोपकार में लगाना चाहिए।

(ii) कवि कहते हैं कि यदि आपके पास अपार धन-दौलत है तो परमपिता

परमेश्वर का स्मरण करते हुए उसे दीन-दुखियों की मदद में लगा देना

चाहिए। ताकि उससे मानव जाति का कल्याण हो सके।

(iii) कवि के अनुसार  महान, अच्छे और परोपकारी व्यक्तियों की यह विशेषता होती है कि वे अपने संचित धन का उपयोग दीन-दुखियों की भलाई और कल्याण के लिए करते हैं। वे दया और परोपकार के ऊँच मार्ग पर अग्रसर होते हुए समाज में अपना मान-सम्मान भी बढ़ाते रहते हैं।

(iv) गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ दैनिक जीवन की बातों से संबद्‌ध हैं और सीधी-सरल भाषा में कही गई हैं। वे प्राय: नीतिपरक हैं जिनमें परंपरा के अतिरिक्त अनुभव का पुट भी है। गिरिधर कवि ने नीति, वैराग्य और अध्यात्म को ही अपनी कविता का विषय बनाया है। जीवन के व्यावहारिक पक्ष का इनके काव्य में प्रभावशाली वर्णन मिलता है। वही काव्य दीर्घजीवी हो सकता है जिसकी पैठ जनमानस में होती है। इस आधार पर नि:संदेह गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ आज भी प्रसंगिक है क्योंकि उनमें लाठी और कंबल जैसे दैनिक जीवन में आने वाली वस्तुओं की महत्ता का वर्णन है, कोयल के समान गुणी व्यक्ति की समाज में आवश्यकता पर जोर है, नि:स्वार्थ भाव से अपना कर्म करने की सीख है और सामाजिक जीवन में उचित आचरण करने की जरूरत भी है।

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मेरे विचार……. दीपक की लौ आकार में भले ही छोटी हो, लेकिन उसकी चमक और रोशनी दूर तक जाती ही है। एक अच्छा शिक्षक वही है जिसके पास पूछने आने के लिए छात्र उसी प्रकार तत्पर रहें जिस प्रकार माँ की गोद में जाने के लिए रहते हैं। मेरे विचार में अध्यापक अपनी कक्षा रूपी प्रयोगशाला का स्वयं वैज्ञानिक होता है जो अपने छात्रों को शिक्षित करने के लिए नव नव प्रयोग करता है। आपका दृष्टिकोण व्यापक है आपके प्रयास सार्थक हैं जो अन्य अध्यापकों को भी प्रेरित कर सकते हैं… संयोग से कुछ ऐसी कार्ययोजनाओं में प्रतिभाग करने का मौका मिला जहाँ भाषा शिक्षण के नवीन तरीकों पर समझ बनी। इस दौरान कुछ नए साथियों से भी मिलना हुआ। उनसे भी भाषा की नई शिक्षण विधियों पर लगातार संवाद होता रहा। साहित्य में रुचि होने के कारण हमने अब शिक्षा से सम्‍बन्धित साहित्य पढ़ना शुरू किया। कोई बच्चा बहुत से लोकप्रिय तरीके से सीखता है तो कोई बच्चा अपने विशिष्ट तरीके से किसी विषय को ग्रहण करता है और अपने तरीके से उस पर अपनी समझ का निर्माण करता है। इसी सन्‍दर्भ में बच्चों के मनोविज्ञान को समझने की जरूरत है। मनोविज्ञान को मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों और व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में देखा जाता है। इसी नजरिये से शिक्षा मनोविज्ञान को भी क्लासरूम के व्यावहारिक परिदृश्य के सन्‍दर्भ में देखने की आवश्यकता है। यहाँ गौर करने वाली बात है, “स्कूल में बच्चों को पढ़ाते समय केवल कुछ बच्चों पर ध्यान देने से हम बच्चों का वास्तविक आकलन नहीं कर पाते कि वे क्या सीख रहे हैं? उनको किसी बात को समझने में कहाँ दिक्कत हो रही है? किस बच्चे को किस तरह की मदद की जरूरत है। किस बच्चे की क्या खूबी है। किस बच्चे की प्रगति सही दिशा में हो रही है। कौन सा बच्चा लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और उसे आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र रूप से पढ़ने और काम करने के ज़्यादा मौके देने की जरूरत है।” एक शिक्षक को बच्चों के आँसू और बच्चों की खुशी दोनों के लिए सोचना चाहिए। बतौर शिक्षक हम बच्चों के पठन कौशल , समझ निर्माण व जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण का निर्माण कर रहे होते हैं। अपने व्यवहार से बच्चों की जिंदगी में एक छाप छोड़ रहे होते हैं। ऐसे में हमें खुद को वक्‍त के साथ अपडेट करने की जरूरत होती है। इसके लिए निरन्‍तर पढ़ना, लोगों से संवाद करना, शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले भावी बदलावों को समझना बेहद जरूरी है। ताकि आप समय के साथ कदमताल करते हुए चल सकें और भावी नागरिकों के निर्माण का काम ज्यादा जिम्मेदारी और सक्रियता के साथ कर सकें। इस बारे में संक्षेप में कह सकते हैं कि बतौर शिक्षक हमें खुद भी लगातार सीखने का प्रयास जारी रखना चाहिए। आज के शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है। पुस्तक जहाँ पहले ज्ञान का प्रमाणिक स्रोत और संसाधन हुआ करता था आज वहाँ तकनीक के कई साधन मौजूद हैं। आज विद्‌यार्थी किताबों की श्याम-श्वेत दुनिया से बाहर निकलकर सूचना और तकनीक की रंग-बिरंगी दुनिया में पहुँच चुका है, जहाँ माउस के एक क्लिक पर उसे दुनिया भर की जानकारी दृश्य रूप में प्राप्त हो जाती है। एक शिक्षक होने के नाते यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि हम समय के साथ खुद को ढालें और शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुचारू रूप से गतिशील बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीक के साधनों का भरपूर प्रयोग करें। यदि आप अपनी कक्षा में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल करते हुए विद्‌यार्थी-केन्द्रित शिक्षण को प्रोत्साहित करते हैं तो आपकी कक्षा में शैक्षणिक वातावरण का विकास होता है और विद्‌यार्थी अपने अध्ययन में रुचि लेते हैं। यह ब्लॉग एक प्रयास है जिसका उददेश्य है कि इतने वर्षों में हिंदी अध्ययन तथा अध्यापन में जो कुछ मैंने सीखा सिखाया । उसे अपने विद्यार्थियों और मित्रों से साझा कर सकूँ यह विद्यार्थियों तथा हमारे बीच एक अखंड श्रृंखला का कार्य करेगा। मै अपनी ग़ैरमौजूदगी में भी अपने ज़रूरतमंद विद्यार्थियों के बहुत पास रहूँगा …… मेरा प्रयास है कि अपने विद्यार्थी समुदाय तथा कक्षा शिक्षण को मैं आधुनिक तकनीक से जोड़ सकूँ जिससे हर एक विद्यार्थी लाभान्वित हो सके …

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