लोकोक्ति

लोकोक्ति’ शब्द ‘लोक + उक्ति’ शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है- लोक में प्रचलित उक्ति या कथन’। संस्कृत में ‘लोकोक्ति’ अलंकार का एक भेद भी है तथा सामान्य अर्थ में लोकोक्ति को ‘कहावत’ कहा जाता है। चूँकि लोकोक्ति का जन्म व्यक्ति द्वारा न होकर लोक द्वारा होता है अतः लोकोक्ति के रचनाकार का पता नहीं होता। इसलिए अँग्रेजी में इसकी परिभाषा दी गई है- ‘ A proverb is a saying without an author’ अर्थात लोकोक्ति ऐसी उक्ति है जिसका कोई रचनाकार नहीं होता।’लोकोक्ति’ के लिए यद्यपि सबसे अधिक मान्य पर्याय ‘कहावत’ ही है पर कुछ विद्वानों की राय है कि ‘कहावत’ शब्द ‘कथावृत्त’ शब्द से विकसित हुआ है अर्थात कथा पर आधारित वृत्त, अतः ‘कहावत’ उन्हीं लोकोक्तियों को कहा जाना चाहिए जिनके मूल में कोई कथा रही हो। जैसे ‘नाच न जाने आँगन टेढ़ा’ या ‘अंगूर खट्टे होना’ कथाओं पर आधारित लोकोक्तियाँ हैं। फिर भी आज हिंदी में लोकोक्ति तथा ‘कहावत’ शब्द परस्पर समानार्थी शब्दों के रूप में ही प्रचलित हो गए हैं।
लोकोक्ति किसी घटना पर आधारित होती है। इसके प्रयोग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये भाषा के सौन्दर्य में वृद्धि करती है। लोकोक्ति के पीछे कोई कहानी या घटना होती है। उससे निकली बात बाद में लोगों की जुबान पर जब चल निकलती है, तब ‘लोकोक्ति’ हो जाती है।

लोकोक्तियाँ ऐसे कथन या वाक्य हैं जिनके स्वरूप में समय के अंतराल के बाद भी परिवर्तन नहीं होता और न ही लोकोक्ति व्याकरण के नियमों से प्रभावित होती है। अर्थात लिंग, वचन, काल आदि का प्रभाव लोकोक्ति पर नहीं पड़ता। इसके विपरीत मुहावरों की संरचना में परिवर्तन देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए ‘अपना-सा मुँह लेकर रह जाना’ मुहावरे की संरचना लिंग, वचन आदि व्याकरणिक कोटि से प्रभावित होती है।
प्रमुख लोकोक्तियाँ व उनका अर्थ:

अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर – छोटे के द्वारा बड़े को उपदेश देना।
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई– परिश्रम कोई करे लाभ किसी और को मिले। अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे– मूल वस्तु रहने पर उससे बनने वाली वस्तुऍं मिल ही जाती हैं।
अंत भला सो सब भला– कार्य का परिणाम सही हो जाए तो सारी गलतियाँ भुला दी जाती हैं।
अंत भले का भला– भलाई करने वाले का भला ही होता है।
अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनोँ को देय– अपने अधिकार का लाभ अपने लोगों को ही पहुँचाना।

अंधा क्या चाहे, दो आँखें– मनचाही वस्तु प्राप्त होना।
अंधा क्या जाने बसंत बहार– जो वस्तु देखी ही नहीं गई, उसका आनंद कैसे जाना जा सकता है।
अंधा पीसे कुत्ता‍ खाय– एक की मजबूरी से दूसरे को लाभ हो जाता है।
अंधा बगुला कीचड़ खाय– भाग्यहीन को सुख नहीं मिलता।
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी– बराबर वाली जोड़ी बनना।
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत– दो मूर्ख एक दूसरे की सहायता करें तो भी दोनों को हानि ही होती है।
अंधे की लाठी– बेसहारे का सहारा।
अंधे के आगे रोये, अपनी आँखें खोये– मूर्ख को ज्ञान देना बेकार है।
अंधे के हाथ बटेर लगना– अनायास ही मनचाही वस्तु मिल जाना।
अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है– किसी के सामने उसका दोष बताने से उसे बुरा ही लगता है।
अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी– मूर्ख को बुद्धिमत्ता की बात सूझना।
अंधेर नगरी चौपट राजा , टके सेर भाजी टके सेर खाजा– जहाँ मुखिया मूर्ख हो और न्याय अन्याय का ख्याल न रखता हो।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता– अकेला व्यक्ति किसी बड़े काम को सम्पन्न करने में समर्थ नहीं हो सकता।
अकेला हँसता भला न रोता भला– सुख हो या दु:ख साथी की जरूरत पड़ती ही है।
अक्ल बड़ी या भैंस– शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का अधिक महत्व होता है।
अच्छी मति जो चाहों, बूढ़े पूछन जाओ– बड़े-बूढ़ों के अनुभव का लाभ उठाना चाहिये।
अटकेगा सो भटकेगा– दुविधा या सोच-विचार में पड़ने से काम नहीं होता।
अधजल गगरी छलकत जाए– ओछा आदमी थोड़ा गुण या धन होने पर इतराने लगता है।
अनजान सुजान, सदा कल्याण– मूर्ख और ज्ञानी सदा सुखी रहते हैं।
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत – नुकसान हो जाने के बाद पछताना बेकार है।
अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज– अनहोनी बात।
बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख– सौभाग्य से कोई बढ़िया चीज़ अपने-आप मिल जाती है और दुर्भाग्य से घटिया चीज़ प्रयत्न करने पर भी नहीं मिलती।
अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना– किसी दूसरे के भरोसे नहीं रहना।
अपना ढेंढर देखे नहीं, दूसरे की फुल्ली निहारे– अपने बड़े से बड़े दुर्गुण को न देखना पर दूसरे के छोटे से छोटे अवगुण की चर्चा करना।
अपना मकान कोट समान– अपना घर सबसे सुरक्षित स्थान होता है।
अपना रख पराया चख– अपनी वस्तु बचाकर रखना और दूसरों की वस्तुएँ इस्तेमाल करना।
अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख– अपनी बहुमूल्य वस्तु को गवाँ देने से आदमी दूसरों का मोहताज हो जाता है।
अपना ही सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष– अपनी ही वस्तु खराब हो तो दूसरों को दोष देना उचित नहीं है।
• अपनी- अपनी खाल में सब मस्त
– अपनी परिस्थिति से संतुष्ट रहना।
• अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग
– सभी का अलग-अलग मत होना।
• अपनी करनी पार उतरनी
– अच्छा परिणाम पाने के लिए स्वयं काम करना पड़ता है।
• अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं
– येन-केन-प्रकारेण स्वार्थपूर्ति करना।
• अपनी गरज बावली
– स्वार्थी आदमी दूसरों की परवाह नहीं करता।
• अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है
– अपने घर में आदमी शक्तिशाली होता है।
• अपनी गँठ पैसा तो पराया आसरा कैसा
– समर्थ व्यक्ति को दूसरे के आसरे की आवश्यकता नहीं होती।
• अपनी चिलम भरने के लिए दूसरे का झोँपड़ा जलाना
– अपने छोटे से स्वार्थ के लिए दूसरे की भारी हानि कर देना।
• अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता
– अपनी चीज़ को कोई खराब नहीं बताता।
• अपनी जाँघ उघारिए आपहि मरिए लाज
– अपने अवगुणों को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करके आप ही पछताना।
• अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना
– मर्जी का मालिक होना।
• अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े
– दूसरों का नुकसान करने के लिए अपने नुकसान की भी परवाह न करना।
• अपनी पगड़ी अपने हाथ
– व्यक्ति अपनी इज्जत की रक्षा स्वयं ही कर सकता है।
• अपने किए का क्या इलाज
– अपने द्वारा किए गए कर्म का फल भोगना ही पड़ता है।
• अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता
– दूसरों के भरोसे काम नहीं होता, सफलता पाने के लिए स्वयं परिश्रम करना पड़ता है।
• अपने पूत को कोई काना नहीं कहता
– अपनी चीज को कोई बुरा नहीं कहता।
• अपने मुँह मिया मिट्ठू बनना
– अपनी बड़ाई आप करना।
• अब की अब, तब की तब
– भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान की ही चिंता करनी चाहिए।
• अब सतवंती होकर बैठी लूट लिया सारा संसार
– उम्र भर बुरे कर्म करने के बाद अच्छा होने का दिखावा करना।
• अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे
– अभी तुम नादान हो।
• अभी दिल्ली दूर है
– सफलता अभी दूर है।
• अरहर की टट्टी गुजराती ताला
– मामूली वस्तु की रक्षा के लिए खर्च की परवाह न करना।
• अजब तेरी माया, कहीं धूप कहीं छाया
– जीवन में सुख और दुःख आते ही रहते हैं।
• अशर्फियाँ लुटाकर कोयलों पर मोहर लगाना
– अच्छे-बुरे का ज्ञान न होना।
• आँख एक नहीं कजरौटा दस-दस
– व्यर्थ का आडम्बर करना।
• आँख ओट पहाड़ ओट
– अनुपलब्ध व्यक्ति से किसी प्रकार का सहारा करना व्यर्थ है।
• आँख और कान में चार अंगुल का फर्क
– सुनी हुई बात की अपेक्षा देखा हुआ सत्य अधिक विश्वसनीय होता है।
• आँख का अंधा नाम नैनसुख
– व्यक्ति के नाम की अपेक्षा गुण प्रभावशाली होता है।
• आ बैल मुझे मार
– जान बूझकर मुसीबत मोल लेना।
• आई तो ईद, न आई तो जुम्मेरात
– आमदनी हुई तो मौज मनाना नहीं तो फाका करना।
• आई मौज फकीर की, दिया झोँपड़ा फूँक
– विरक्त व्यक्ति को किसी चीज की परवाह नहीं होती।
• आई है जान के साथ जाएगी जनाज़े के साथ
– लाईलाज बीमारी।
• आग कह देने से मुँह नहीं जल जाता
– कोसने से किसी का अहित नहीं हो जाता।
• आग का जला आग ही से अच्छा होता है
– कष्ट देने वाली वस्तु कष्ट का निवारण भी कर देती है।
• आग खाएगा तो अंगार उगलेगा
– बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है।
• आग बिना धुआँ नहीं
– बिना कारण कुछ भी नहीं होता।
• आगे जाए घुटना टूटे, पीछे देखे आँख फूटे
– दुर्दिन झेलना।
• आगे नाथ न पीछे पगहा
– पूर्णत: स्वतन्त्र रहना।
• आज का बनिया कल का सेठ
– परिश्रम करते रहने से आदमी आगे बढ़ता जाता है।
• आटे का चिराग, घर रखूँ तो चूहा खाए, बाहर रखूँ तो कौआ ले जाए
– ऐसी वस्तु जिसे बचाना मुश्किल हो।
• आदमी-आदमी में अंतर कोई हीरा कोई कंकर
– व्यक्तियों के स्वभाव तथा गुण भिन्न-भिन्न होते हैं।
• आदमी की दवा आदमी है
– मनुष्य ही मनुष्य की सहायता करते हैं।
• आदमी को ढाई गज कफन काफी है
– अपनी हालत पर संतुष्ट रहना।
• आदमी जाने बसे सोना जाने कसे
– आदमी की पहचान नजदीकी से और सोने की पहचान सोना कसौटी से होती है।
• आम के आम गुठलियों के दाम
– दोहरा लाभ होना।
• आधा तीतर आधा बटेर
– बेमेल वस्तु।
• आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिले न पूरी पावै
– लालच करने से हानि होती है।
• आप काज़ महा काज़
– अपने उद्देश्य की पूर्ति करना चाहिए।
• आप भला तो जग भला
– भले आदमी को सब लोग भले ही प्रतीत होते हैं।
• आप मरे जग परलय
– मृत्यु के पश्चात कोई नहीं जानता कि संसार में क्या हो रहा है।
• आप मियाँ जी मँगते द्वार खड़े दरवेश
– असमर्थ व्यक्ति दूसरों की सहायता नहीं कर सकता।
• आपा तजे तो हरि को भजे
– परमार्थ करने के लिए स्वार्थ को त्यागना पड़ता है।
• आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या मतलब
– निरुद्देश्य कार्य न करना।
• आए की खुशी न गए का गम
– अपनी हालात में संतुष्ट रहना।
• आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास
– लक्ष्य को भूलकर अन्य कार्य करना।
• आसमान का थूका मुँह पर आता है
– बड़े लोगों की निंदा करने से अपनी ही बदनामी होती है।
• आसमान से गिरा खजूर पर अटका
– सफलता पाने में अनेक बाधाओं का आना।
• इक नागिन अरु पंख लगाई
– एक के साथ दूसरे दोष का होना।
• इतना खाए जितना पावे
– अपनी औकात को ध्यान में रखकर खर्च करना।
• इतनी सी जान, गज भर की ज़बान
– अपनी उम्र के हिसाब से अधिक बोलना।
• इधर कुआँ उधर खाई
– हर हाल में मुसीबत।
• इधर न उधर, यह बला किधर
– अचानक विपत्ति आ पड़ना।
• इन तिलों में तेल नहीं
– किसी प्रकार का आसरा न होना।
• इसके पेट में दाढ़ी है
– कम उम्र में बुद्धि का अधिक विकास होना।
• इस हाथ दे उस हाथ ले
– किसी कार्य का फल तत्काल चाहना।
• उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
– दोषी होने पर भी दूसरों पर धौंस जमाना।
• उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी
– दुविधा में पड़ना।
• उत्तर जाए या दक्खिन, वही करम के लक्ख़न
– स्थान बदल जाने पर भी व्यक्ति के लक्षण नहीं बदलते।
• उल्टी गंगा पहाड़ चली
– असंभव कार्य।
• उल्टे बाँस बरेली को
– विपरीत कार्य करना।
• ऊँची दुकान फीका पकवान
– तड़क-भड़क करके स्तरहीन चीजों को खपाना।
• ऊँट किस करवट बैठता है
– सन्देह की स्थिति में होना।
• ऊँट के मुँ‍ह में जीरा
– अत्यन्त अपर्याप्त।
• ऊधो का लेना न माधो का देना
– किसी के तीन-पाँच में न रहना, स्वयं में लिप्त होना।
• एक अंडा वह भी गंदा
– बेकार की वस्तु।
• एक अनार सौ बीमार
– किसी वस्तु की मात्रा बहुत कम किन्तु उसकी माँग बहुत अधिक होना।
• एक आवे के बर्तन
– सभी का एक जैसा होना।
• एक और एक ग्यारह होते हैं
– एकता में बल है।
• एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा
– बहुत अधिक खराब होना।
• एक गंदी मछली सारे तलाब को गंदा कर देती है
– अनेक अच्छाईयोँ पर भी एक बुराई भारी पड़ती है।
• एक टकसाल के ढले
– सभी का एक जैसा होना।
• एक तवे की रोटी, क्या छोटी क्या मोटी
– किसी प्रकार का भेदभाव न रखना।
• एक तो चोरी ऊपर से सीना-जोरी
– स्वयं के दोषी होने पर भी रोब गाँठना।
• एक ही थैली के चट्टे-बट्टे
– एक जैसे दुर्गुण वाले।
• एक मुँह दो बात
– अपनी बात से पलटना।
• एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती
– समान अधिकार वाले दो व्यक्ति एक क्षेत्र में नहीं रह सकते।
• एक हाथ से ताली नहीं बजती
– झगड़े के लिए दोनों पक्ष जिम्मेदार होते हैं।
• एक ही लकड़ी से सबको हाँकना
– छोटे-बड़े का ध्यान न रखना।
• एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय
– एक साथ अनेक कार्य करने से कोई भी कार्य पूरा नहीं होता।
• ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना
– कठिनाइयों न डरना।
• ओस चाटे प्यास नहीं बुझती
– आवश्यक से अत्यन्त कम की प्राप्ति होना।
• कंगाली में आटा गीला
– मुसीबत पर मुसीबत आना।
• ककड़ी के चोर को फाँसी नहीं दी जाती
– अपराध के अनुसार ही दण्ड दिया जाना चाहिए।
• कचहरी का दरवाजा खुला है
– न्याय पर सभी का अधिकार होता है।
• कड़ाही से गिरा चूल्हे में पड़ा
– छोटी विपत्ति से छूटकर बड़ी विपत्ति में पड़ जाना।
• कब्र में पाँव लटकना
– अत्यधिक उम्र वाला।
• कभी के दिन बड़े कभी की रात
– सब दिन एक समान नहीं होते।
• कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर
– परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
• कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता
– ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण नहीं छिप जाते।
• कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात वापस नहीं आती
– सोच-समझकर ही बात करनी चाहिए।
• करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
– अभ्यास करते रहने से सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है।
• करम के बलिया, पकाई खीर हो गया दलिया
– काम बिगड़ना।
• करमहीन खेती करे, बैल मरे या सूखा पड़े
– दुर्भाग्य हो तो कोई न कोई काम खराब होता रहता है।
• कर लिया सो काम, भज लिया सो राम
– अधूरे काम का कुछ भी मतलब नहीं होता।
• कर सेवा तो खा मेवा
– अच्छे कार्य का परिणाम अच्छा ही होता है।
• करे कोई भरे कोई
– किसी की करनी का फल किसी अन्य द्वारा भोगना।
• करे दाढ़ी वाला, पकड़ा जाए जाए मुँछों वाला
– प्रभावशाली व्यक्ति के अपराध के लिए किसी छोटे आदमी को दोषी ठहराया जाना।
• कल किसने देखा है
– आज का काम आज ही करना चाहिए।
• कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है
– बुरी संगत होने पर कलंक लगता ही है।
• कहाँ राम–राम, कहाँ टाँय–टाँय
– असमान चीजों की तुलना नहीं हो सकती।
• कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा
– असम्बन्धित वस्तुओं का एक स्थान पर संग्रह।
• कहे खेत की, सुने खलिहान की
– कुछ कहने पर कुछ समझना।
• का वर्षा जब कृषी सुखाने
– अवसर निकलने जाने पर सहायता भी व्यर्थ होती है।
• कागज़ की नाव नहीं चलती
– बेईमानी या धोखेबाज़ी ज्यादा दिन नहीं चल सकती।
• काजल की कौठरी में कैसेहु सयानो जाय एक लीक काजल की लगिहै सो लागिहै
– बुरी संगत होने पर कलंक अवश्य ही लगता है।
• काज़ी जी दुबले क्यों? शहर के अंदेशे से
– दूसरों की चिन्ता में घुलना।
• काठ की हाँडी एक बार ही चढ़ती है
– धोखा केवल एक बार ही दिया जा सकता है, बार बार नहीं।
• कान में तेल डाल कर बैठना
– आवश्यक चिन्ताओं से भी दूर रहना।
• काबुल में क्या गधे नहीं होते
– अच्छाई के साथ–साथ बुराई भी रहती है।
• काम का न काज का, दुश्मन अनाज का
– खाना खाने के अलावा और कोई भी काम न करने वाला व्यक्ति।
• काम को काम सिखाता है
– अभ्यास करते रहने से आदमी होशियार हो जाता है।
• काल के हाथ कमान, बूढ़ा बचे न जवान
– मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, वह सभी को ग्रसती है।
• काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक
– मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, वह सभी को ग्रसती है।
• काला अक्षर भैंस बराबर
– अनपढ़ होना।
• काली के ब्याह मेँ सौ जोखिम
– एक दोष होने पर लोगोँ द्वारा अनेक दोष निकाल दिए जाते हैं।
• किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान
– नौकरी करके स्वाभिमान की रक्षा नहीं हो सकती।
• किस खेत की मूली है
– महत्व न देना।
• किसी का घर जले कोई तापे
– किसी की हानि पर किसी अन्य का लाभान्वित होना।
• कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता
– अपनी चीज को कोई खराब नहीं कहता।
• कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है
– कुछ भी बचत न होना।
• कुतिया चोरों से मिल जाए तो पहरा कौन देय
– भरोसेमन्द व्यक्ति का बेईमान हो जाना।
• कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है
– कुत्ता भी बैठने के पहले बैठने के स्थान को साफ करता है।
• कुत्ते की दुम बारह बरस नली में रखो तो भी टेढ़ी की टेढ़ी
– लाख कोशिश करने पर भी दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं त्यागता।
• कुत्ते को घी नहीं पचता
– नीच आदमी ऊँचा पद पाकर इतराने लगता है।
• कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बजार
– समर्थ व्यक्ति को किसी का डर नहीं होता।
• कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है
– अपनी ही वस्तु की प्रशंसा करना।
• कै हंसा मोती चुगे कै भूखा मर जाय
– सम्मानित व्युक्ति अपनी मर्यादा में रहता है।
• कोई माल मस्त, कोई हाल मस्त
– कोई अमीरी से संतुष्ट तो कोई गरीबी से।
• कोठी वाला रोवें, छप्पर वाला सोवे
– धनवान की अपेक्षा गरीब अधिक निश्चिंत रहता है।
• कोयल होय न उजली सौ मन साबुन लाइ
– स्वभाव नहीं बदलता।
• कोयले की दलाली में मुँह काला
– बुरी संगत से कलंक लगता ही है।
• कौड़ी नहीं गाँठ चले बाग की सैर
– अपनी सामर्थ्य से अधिक की सोचना।
• कौन कहे राजाजी नंगे हैं
– बड़े लोगों की बुराई नहीं देखी जाती।
• कौआ चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल
– दूसरों की नकल करने से अपनी मौलिकता भी खो जाती है।
• क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा
– अत्यन्त तुच्छ होना।
• खग जाने खग ही की भाषा
– एक जैसे प्रकृति के लोग आपस में मिल ही जाते हैं।
• ख्याली पुलाव से पेट नहीं भरता
– केवल सोचते रहने से काम पूरा नहीं हो जाता।
• खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है
– देखादेखी काम करना।
• खाक डाले चाँद नहीं छिपता
– किसी की निंदा करने से उसका कुछ नहीं बिगड़ता।
• खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय
– ऊपरी रूप बदलने से गुण अवगुण नहीं बदलता।
• खाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे
– बेकाम आदमी उल्टे-सीधे काम करता रहता है।
• खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
– अपनी असफलता पर खीझना।
• खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती
– कोई नहीं जानता की अपने कर्मों का कब और कैसा फल मिलेगा।
• खुदा गंजे को नाखून नहीं देता
– ईश्वर सभी की भलाई का ध्यान रखता है।
• खुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है
– भाग्यशाली होना।
• खुशामद से ही आमद है
– खुशामद से कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।
• खूँटे के बल बछड़ा कूदे
– दूसरे की शह पाकर ही अकड़ दिखाना।
• खेत खाए गदहा, मार खाए जुलाहा
– किसी के दोष की सजा किसी अन्य को मिलना।
• खेती अपन सेती
– दूसरों के भरोसे खेती नहीं की जा सकती।
• खेल-खिलाड़ी का, पैसा मदारी का
– मेहनत किसी की लाभ किसी और का।
• खोदा पहाड़ निकली चुहिया
– परिश्रम का कुछ भी फल न मिलना।
• गंगा गए तो गंगादास, यमुना गए यमुनादास
– एक मत पर स्थिर न रहना।
• गंजेडी यार किसके दम लगाया खिसके
– स्वार्थी आदमी स्वार्थ सिद्ध होते ही मुँह फेर लेता है।
• गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता
– स्वभाव नहीं बदलता।
• गधा भी कहीं घोड़ा बन सकता है
– बुरा आदमी कभी भला नहीं बन सकता।
• गई माँगने पूत, खो आई भरतार
– थोड़े लाभ के चक्कर में भारी नुकसान कर लेना।
• गर्व का सिर नीचा
– घमंडी आदमी का घमंड चूर हो ही जाता है।
• गरीब की लुगाई सब की भौजाई
– गरीब आदमी से सब लाभ उठाना चाहते हैं।
• गरीबी तेरे तीन नाम- झूठा, पाजी, बेईमान
– गरीब का सवर्त्र अपमान होता रहता है।
• गरीबों ने रोज़े रखे तो दिन ही बड़े हो गए
– गरीब की किस्मत ही बुरी होती है।
• गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त
– जिसका काम है वह तो आलस से करे, दूसरे फुर्ती दिखाएं।
• गाँठ का पूरा, आँख का अंधा
– मालदार असामी।
• गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की ओर भागता है
– विपत्ति में बुद्धि काम नहीं करती।
• गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज
– झूठ और ढोंग रचना।
• गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दें
– काम प्रेम से निकल सके तो सख्ती न करें।
• गुड़ न दें, पर गुड़ सी बात तो करें
– कुछ न दें पर मीठे बोल तो बोलें।
• गुरु-गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए
– छोटों का बड़ों से आगे बढ़ जाना।
• गूदड़ में लाल नहीं छिपता
– गुण स्वयं ही झलकता है।
• गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है
– दोषी के साथ निर्दोष भी मारा जाता है।
• गोद में बैठकर आँख में उँगली करना/गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचना
– भलाई के बदले बुराई करना।
• गोद में छोरा, शहर में ढिंढोरा
– पास की वस्तु नजर न आना।
• घड़ी भर में घर जले, अढ़ाई घड़ी भद्रा
– समय पहचान कर ही कार्य करना चाहिए।
• घड़ी में तोला, घड़ी में माशा
– चंचल विचारों वाला।
• घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते
– घर में आने वाले को मान देना चाहिए।
• घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध
– अपने ही घर में अपनी कीमत नहीं होती।
• घर का भेदी लंका ढाए
– आपसी फूट का परिणाम बुरा होता है।
• घर की मुर्गी दाल बराबर
– अपनी चीज़ या अपने आदमी की कदर नहीं।
• घर खीर तो बाहर खीर
– समृद्धि सम्मान प्रदान करती है।
• घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने
– कुछ न होने पर भी होने का दिखावा करना।
• घायल की गति घायल जाने
– कष्ट भोगने वाला ही वही दूसरों के कष्ट को समझ सकता है।
• घी गिरा खिचड़ी में
– लापरवाही के बावजूद भी वस्तु का सदुपयोग होना।
• घी सँवारे काम बड़ी बहू का नाम
– साधन पर्याप्त हों तो काम करने वाले को यश भी मिलता है।
• घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या?
– व्यापार में रियायत नहीं की जाती।
• घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपने ही मक्खियाँ उड़ाएगा
– उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है।
• घोड़े को लात, आदमी को बात
– सामने वाले का स्वभाव पहचान कर उचित व्यहार करना।
• चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे
– कुछ पाने के लिए कुछ लगाना ही पड़ता है।
• चट मँगनी पट ब्याह
– त्वरित गति से कार्य होना।
• चढ़ जा बेटा सूली पर, भगवान भला करेंगे
– बिना सोचे विचारे खतरा मोल लेना।
• चने के साथ कहीं घुन न पिस जाए
– दोषी के साथ कहीं निर्दोष न मारा जाए।
• चमगादड़ों के घर मेहमान आए, हम भी लटके तुम भी लटको
– गरीब आदमी क्या आवभगत करेगा।
• चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए
– महा कंजूस।
• चमार चमड़े का यार
– स्वार्थी व्यक्ति।
• चरसी यार किसके दम लगाया खिसके
– स्वार्थी व्यक्ति स्वार्थ सिद्ध होते ही मुँह फेर लेता है।
• चलती का नाम गाड़ी
– कार्य चलते रहना चाहिए।
• चाँद को भी ग्रहण लगता है
– भले आदमी की भी बदनामी हो जाती है।
• चाकरी में न करी क्या?
– नौकरी में मालिक की आज्ञा अवहेलना नहीं की जा सकती।
• चार दिन की चाँदनी फिर अँधियारी रात
– सुख थोड़े ही दिन का होता है।
• चिकना मुँह पेट खाली
– देखने में अच्छा-भला भीतर से दु:खी।
• चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता
– निर्लज्ज़ आदमी पर किसी बात का असर नहीं पड़ता।
• चिकने मुँह को सब चूमते हैं
– समृद्ध व्यक्ति के सभी यार होते हैं।
• चिड़िया की जान गई, खाने वाले को मजा न आया
– भारी काम करने पर भी सराहना न मिलना।
• चित भी मेरी पट भी मेरी अंटी मेरे बाबा का
– हर हालत में अपना ही लाभ देखना।
• चिराग तले अँधेरा
– पास की चीज़ दिखाई न पड़ना।
• चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी
– शाम होते ही सोने लगना।
• चींटी की मौत आती है तो उसके पर निकलने लगते हैं
– घमंड करने से नाश होता है।
• चील के घोँसले में मांस कहाँ
– दरिद्र व्यक्ति क्या बचत कर सकता है?
• चुड़ैल पर दिल आ जाए तो वह भी परी है
– पसंद आ जाए तो बुरी वस्तु भी अच्छी ही लगती है।
• चुल्लू भर पानी में डूब मरना
– शर्म से डूब जाना।
• चुल्लू-चुल्लू साधेगा, दुआरे हाथी बाँधेगा
– थोड़ा-थोड़ा जमा करके अमीर बना जा सकता है।
• चूल्हे की न चक्की की
– किसी काम न होना।
• चूहे का बच्चा बिल ही खोदता है
– स्वभाव नहीं बदलता।
• चूहे के चाम से कहीं नगाड़े मढ़े जाते हैं
– अपर्याप्त।
• चूहों की मौत बिल्ली का खेल
– दूसरे को कष्ट देकर मजा लेना।
• चोट्टी कुतिया जलेबियों की रखवाली
– चोर को रक्षा करने के कार्य पर लगाना।
• चोर के पैर नहीं होते
– दोषी व्यक्ति स्वयं फँसता है।
• चोर-चोर मौसेरे भाई
– एक जैसे बदमाशों का मेल हो ही जाता है।
• चोर-चोरी से जाए, हेरा-फेरी से न जाए
– दुष्ट आदमी से पूरी तरह से दुष्टता नहीं छूटती।
• चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले
– शक्तिशाली आदमी से दो व्यक्ति भी हार जाते हैं।
• चोर को कहे चोरी कर और साह से कहे जागते रहो
– दो पक्षों को लड़ाने वाला।
• चोरी और सीना जोरी
– गलत काम करके भी अकड़ दिखाना।
• चोरी का धन मोरी में
– हराम की कमाई बेकार जाती है।
• चौबे गए छब्बे बनने, दूबे ही रह गए
– अधिक लालच करके अपना सब कुछ गवाँ देना।
• छछूँदर के सिर में चमेली का तेल
– अयोग्य के पास अच्छी चीज होना।
• छलनी कहे सूई से तेरे पेट में छेद
– अपने अवगुणों को न देखकर दूसरों की आलोचना करना।
• छाज (सूप) बोले तो बोले, छलनी भी बोले जिसमें हजार छेद
– ज्ञानी के समक्ष अज्ञानी का बोलना।
• छीके कोई, नाक कटावे कोई
– किसी के दोष का फल किसी दूसरे के द्वारा भोगना।
• छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर
– हर तरफ से हानि ही हानि होना।
• छोटा मुँह बड़ी बात
– अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना।
• छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभान अल्लाह
– छोटे के अवगुणों से बड़े के अवगुण अधिक होना।
• जंगल में मोर नाचा किसने देखा
– कद्र न करने वालों के समक्ष योग्यता प्रदर्शन।
• जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं
– भीतर से शत्रु ऊपर से मित्र।
• जने-जने की लकड़ी, एक जने का बोझ
– अकेला व्यक्ति काम पूरा नहीं कर सकता किन्तु सब मिल काम करें तो काम पूरा हो जाता है।
• जब चने थे दाँत न थे, जब दाँत भये तब चने नहीं
– कभी वस्तु है तो उसका भोग करने वाला नहीं और कभी भोग करने वाला है तो वस्तु नहीं।
• जब तक जीना तब तक सीना
– आदमी को मृत्युपर्यन्त काम करना ही पड़ता है।
• जब तक साँस तब तक आस
– अंत समय तक आशा बनी रहती है।
• जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर
– जबरदस्त आदमी दबाव डाल कर काम लेता है।
• जबरा मारे रोने न दे
– जबरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहन करना पड़ता है।
• जबान को लगाम चाहिए
– सोच-समझकर बोलना चाहिए।
• ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए
– मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है।
• जर का जोर पूरा है, और सब अधूरा है
– धन में सबसे अधिक शक्ति है।
• जर है तो नर नहीं तो खंडहर
– पैसे से ही आदमी का सम्मान है।
• जल में रहकर मगर से बैर
– जहाँ रहना हो वहाँ के शक्तिशाली व्यक्ति से बैर ठीक नहीं होता।
• जस दूल्हा तस बाराती
– स्वभाव के अनुसार ही मित्रता होती है।
• जहँ जहँ पैर पड़े संतन के, तहँ तहँ बंटाधार
– अभागा व्यक्ति जहाँ भी जाता है बुरा होता है।
• जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी
– धन प्राप्त होने पर खुशामदी अपने आप मिल जाते हैं।
• जहाँ चार बर्तन होंगे, वहाँ खटकेंगे भी
– सभी का मत एक जैसा नहीं हो सकता।
• जहाँ चाह है वहाँ राह है
– काम के प्रति लगन हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है।
• जहाँ देखे तवा परात, वहाँ गुजारे सारी रात
– जहाँ कुछ प्राप्ति की आशा दिखे वहीं जम जाना।
• जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि
– कवि की कल्पना की पहुँच सर्वत्र होती है।
• जहाँ फूल वहाँ काँटा
– अच्छाई के साथ बुराई भी होती ही है।
• जहाँ मुर्गा नहीं होता, क्या वहाँ सवेरा नहीं होता
– किसी के बिना किसी का काम रूकता नहीं है।
• जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई
– दु:ख को भुक्तभोगी ही जानता है।
• जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोएगा
– हमेशा सतर्क रहना चाहिए।
• जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले
– अत्यन्त प्रभावशाली होना।
• जान मारे बनिया पहचान मारे चोर
– बनिया और चोर जान पहचान वालों को ठगते हैं।
• जाए लाख, रहे साख
– धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए।
• जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा
– जितना अधिक लगाओगे उतना ही अच्छा पाओगे।
• जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारो
– आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
• जितने मुँह उतनी बातें
– अस्पष्ट होना।
• जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ
– परिश्रम करने वाले को ही लाभ होता है।
• जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना
– जो उपकार करे, उसका ही अहित करना।
• जिसका काम उसी को साजै
– जो काम जिसका है वहीं उसे ठीक तरह से कर सकता है।
• जिसका खाइए उसका गाइए
– जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो।
• जिसका जूता उसी का सिर
– दुश्मन को दुश्मन के ही हथियार से मारना।
• जिसकी लाठी उसकी भैंस
– शक्तिशाली ही समर्थ होता है।
• जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई
– धनी आदमी के सभी मित्र होते हैं।
• जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन
– समर्थ व्यक्ति जिसका चाहे कल्याण कर सकता है।
• जर जाए, घी न जाए
– महाकृपण।
• जीती मक्खी नहीं निगली जाती
– जानते बूझते गलत काम नहीं किया जा सकता।
• जीभ भी जली और स्वाद भी न आया
– कष्ट सहकर भी उद्देश्य पूर्ति न होना।
• जूठा खाए मीठे के लालच
– लाभ के लालच में नीच काम करना।
• जैसा करोगे वैसा भरोगे
– जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
• जैसा बोवोगे वैसा काटोगे
– जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
• जैसा मुँह वैसा थप्पड़
– जो जिसके योग्य हो उसको वही मिलता है।
• जैसा राजा वैसी प्रजा
– राजा नेक तो प्रजा भी नेक, राजा बद तो प्रजा भी बद।
• जैसी करनी वैसी भरनी
– जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
• जैसे तेरी बाँसुरी, वैसे मेरे गीत
– गुण के अनुसार ही प्राप्ति होती है।
• जैसे कंता घर रहे वैसे रहे परदेश
– निकम्मा आदमी घर में रहे या बाहर कोई अंतर नहीं।
• जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ
– दुष्ट लोग एक जैसे ही होते हैं।।
• जो गरजते हैं वो बरसते नहीं
– डींग हाँकने वाले काम के नहीं होते हैं।
• जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से
– बाप का प्रभाव बेटे पर पड़ता है।
• जो गुड़ खाए सो कान छिदाए
– लाभ पाने वाले को कष्ट सहना ही पड़ता है।
• जो तोको काँटा बुवे ताहि बोइ तू फूल
– बुराई का बदला भी भलाई से दो।
• जो बोले सों घी को जाए
– बड़बोलेपन से हानी ही होती है।
• जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा
– जो मन मेँ है वह प्रकट होगा ही।
• ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय
(1) पद के अनुसार जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं।
(2) उधारी को छूटते ही रहना चाहिए अन्यथा ब्याज बढ़ते ही जाता है।
• झूठ के पाँव नहीं होते
– झूठा आदमी अपनी बात पर खरा नहीं उतरता।
• झोपड़ी में रहें, महलों के ख्वाब देखें
– अपनी सामर्थ्य से बढ़कर चाहना।
• टके का सब खेल है
– धन सब कुछ करता है।
• ठंडा करके खाओ
– धीरज से काम करो।
• ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है
– शान्त व्याक्ति क्रोधी को झुका देता है।
• ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम
– अच्छी वस्तु का अच्छा दाम।
• ठोकर लगे तब आँख खुले
– अक्ल अनुभव से आती है।
• डण्डा सब का पीर
– सख्ती करने से लोग काबू में आते हैं।
• डायन को दामाद प्यारा
– खराब लोगों को भी अपने प्यारे होते हैं।
• डूबते को तिनके का सहारा
– विपत्ति में थोड़ी सी सहायता भी काफी होती है।
• ढाक के तीन पात
– अपनी बात पर अड़े रहना।
• ढोल के भीतर पोल
– झूठा दिखावा करने वाला।
• तख्त या तख्ता
– या तो उद्देश्य की प्राप्ति हो या स्वयं मिट जाएँ।
• तबेले की बला बंदर के सिर
– अपना अपराध दूसरे के सिर मढ़ना।
• तन को कपड़ा न पेट को रोटी
– अत्यन्त दरिद्र।
• तलवार का खेत हरा नहीं होता
– अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता।
• ताली दोनों हाथों से बजती है
– केवल एक पक्ष होने से लड़ाई नहीं हो सकती।
• तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटाऊ होवे जैसा
– स्त्री के बिना पुरूष अधूरा होता है।
• तीन बुलाए तेरह आए, दे दाल में पानी
– समय आ पड़े तो साधन निकाल लेना पड़ता है।
• तीन में न तेरह में
– निष्पक्ष होना।
• तेरी करनी तेरे आगे, मेरी करनी मेरे आगे
– सबको अपने-अपने कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है।
• तुम्हारे मुँह में घी शक्कर
– शुभ सन्देश।
• तुरत दान महाकल्याण
– काम को तत्काल निबटाना।
• तू डाल-डाल मैं पात-पात
– चालाक के साथ चालाकी चलना।
• तेल तिलों से ही निकलता है
– सामर्थ्यवान व्यक्ति से ही प्राप्ति होती है।
• तेल देखो तेल की धार देखो
– धैर्य से काम लेना।
• तेल न मिठाई, चूल्हे धरी कड़ाही
– दिखावा करना।
• तेली का तेल जले, मशालची की छाती फटे
– दान कोई करे कुढ़न दूसरे को हो।
• तेली के बैल को घर ही पचास कोस
– घर में रहने पर भी अक्ल का अंधा कष्ट ही भोगता है।
• तेली खसम किया, फिर भी रूखा खाया
– सामर्थ्यतवान की शरण में रहकर भी दु:ख उठाना।
• थका ऊँट सराय ताकता
– परिश्रम के पश्चात् विश्राम आवश्यक होता है।
• थूक से सत्तू नहीं सनते
– कम सामग्री से काम पूरा नहीं हो पाता।
• थोथा चना बाजे घना
– मूर्ख अपनी बातों से अपनी मूर्खता को प्रकट कर ही देता है।
• दमड़ी की बुढिया ढाई टका सिर मुँड़ाई
– मामूली वस्तु के रख रखाव के लिए अधिक खर्च करना।
• दबाने पर चींटी भी चोट करती है
– दुःख पहुँचाने पर निर्बल भी वार करता है।
• दमड़ी की हाँड़ी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई
– असलियत जानने के लिए थोड़ी सी हानि सह लेना।
• दर्जी की सुई, कभी धागे में कभी टाट में
– परिस्थिति के अनुसार कार्य।
• दलाल का दिवाला क्या, मस्जिद में ताला क्या
– निर्धन को लुटने का डर नहीं होता।
• दाग लगाए लँगोटिया यार
– अपनों से धोखा खाना।
• दाता दे भंडारी का पेट फटे
– दान कोई करे कुढ़न दूसरे को हो।
• दादा कहने से बनिया गुड़ देता है
– मीठे बोल बोलने से काम बन जाता है।
• दान के बछिया के दाँत नहीं देखे जाते
– मुफ्त में मिली वस्तु के गुण-अवगुण नहीं परखे जाते।
• दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम
– हक की वस्तु अवश्य ही मिलती है।
• दाम सँवारे सारे काम
– पैसा सब काम करता है।
• दाल में काला होना
– गड़बड़ होना।
• दाल-भात में मसूरचंद
– जबरदस्ती दखल देने वाला।
• दाल में नमक, सच में झूठ
– थोड़ा-सा झूठ बोलना गलत नहीं होता।
• दिनन के फेर से सुमेरू होत माटी को
– बुरे समय में सोना भी मिट्टी हो जाता है।
• दिल्ली अभी दूर है
– सफलता दूर है।
• दीवार के भी कान होते हैं
– सतर्क रहना चाहिए।
• दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है
– जिससे लाभ होता है, उसकी धौंस भी सहनी पड़ती है।
• दुनिया का मुँह किसने रोका है
– बोलने वालों की परवाह नहीं करनी चाहिए।
• दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम
– दुविधा में पड़ने से कुछ भी नहीं मिलता।
• दूल्हा को पत्तल नहीं, बजनिये को थाल
– बेतरतीब काम करना।
• दूध का दूध पानी का पानी
– उचित न्याय होना।
• दूध पिलाकर साँप पोसना
– शत्रु का उपकार करना।
• दूर के ढोल सुहावने
– देख परख कर ही सही गलत का ज्ञान करना।
• दूसरे की पत्तल लंबा-लंबा भात
– दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है।
• देसी कुतिया विलायती बोली
– दिखावा करना।
• देह धरे के दण्ड हैं
– शरीर है तो कष्ट भी होगा।
• दोनों हाथों में लड्डू
– सभी प्रकार से लाभ ही लाभ।
• दो लड़े तीसरा ले उड़े
– दो की लड़ाई में तीसरे का लाभ होना।
• धनवंती को काँटा लगा दौड़े लोग हजार
– धनी आदमी को थोड़ा-सा भी कष्ट हो तो बहुत लोग उनकी सहायता को आ जाते हैं।
• धन्ना सेठ के नाती बने हैं
– अपने को अमीर समझना।
• धर्म छोड़ धन कौन खाए
– धर्म विरूद्ध कमाई सुख नहीं देती।
• धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए हैं
– अनुभवी होना।
• धोबी का गधा घर का ना घाट का
– कहीं भी इज्जत न पाना।
• धोबी पर बस न चला तो गधे के कान उमेठे
– शक्तिशाली पर आने वाले क्रोध को निर्बल पर उतारना।
• धोबी के घर पड़े चोर, लुटे कोई और
– धोबी के घर चोरी होने पर कपड़े दूसरों के ही लुटते हैं।
• धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को
– सब अपने ही नुकसान की बात करते हैं।
• नंगा बड़ा परमेश्वर से
– निर्लज्ज से सब डरते हैं।
• नंगा क्या नहाएगा क्या निचोड़ेगा
– अत्यन्त निर्धन होना।
• नंगे से खुदा डरे
– निर्लज्ज से भगवान भी डरते हैं।
• न अंधे को न्योता देते न दो जने आते
– गलत फैसला करके पछताना।
• न इधर के रहे, न उधर के रहे
– दुविधा में रहने से हानि ही होती है।
• नकटा बूचा सबसे ऊँचा
– निर्लज्ज से सब डरते हैं इसलिए वह सबसे ऊँचा होता है।
• नक्कारखाने में तूती की आवाज
– महत्व न मिलना।
• नदी किनारे रूखड़ा जब-तब होय विनाश
– नदी के किनारे के वृक्ष का कभी भी नाश हो सकता है।
• न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी
– ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके/असम्भव शर्त लगाना।
• नमाज़ छुड़ाने गए थे, रोज़े गले पड़े
– छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के बदले बड़ी मुसीबत में पड़ना।
• नया नौ दिन पुराना सौ दिन
– साधारण ज्ञान होने से अनुभव होने का अधिक महत्व होता है।
• न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी
– ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके।
• नाई की बरात में सब ही ठाकुर
– सभी का अगुवा बनना।
• नाक कटी पर घी तो चाटा
– लाभ के लिए निर्लज्ज हो जाना।
• नाच न जाने आँगन टेढ़ा
– बहाना करके अपना दोष छिपाना।
• नानी के आगे ननिहाल की बातें
– बुद्धिमान को सीख देना।
• नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे
– खाना किसी का, गाना किसी का।
• नानी क्वाँरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह
– झूठी बड़ाई।
• नाम बड़े दर्शन छोटे
– झूठा दिखावा।
• नाम बढ़ावे दाम
– किसी चीज का नाम हो जाने से उसकी कीमत बढ़ जाती है।
• नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमाए खाए
– बदनामी से बुरा और नेकनामी से भला होता है।
• नीचे की साँस नीचे, ऊपर की साँस ऊपर
– अत्यधिक घबराहट की स्थिति।
• नीचे से जड़ काटना, ऊपर से पानी देना
– ऊपर से मित्र, भीतर से शत्रु।
• नीम हकीम खतरा-ए-जान
– अनुभवहीन व्याक्ति के हाथों काम बिगड़ सकता है।
• नेकी और पूछ-पूछ
– भलाई का काम।
• नौ दिन चले अढ़ाई कोस
– अत्यन्त मंद गति से कार्य करना।
• नौ नकद, न तेरह उधार
– नकद का काम उधार के काम से अच्छा।
• नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली
– जीवन भर कुकर्म करके अन्त में भला बनना।
• पंच कहे बिल्ली तो बिल्ली‍ ही सही
– सबकी राय में राय मिलाना।
• पंचों का कहना सिर माथे पर, पर नाला वहीं रहेगा
– दूसरों की सुनकर भी अपने मन की करना।
• पकाई खीर पर हो गया दलिया
– दुर्भाग्य।
• पगड़ी रख, घी चख
– मान-सम्मान से ही जीवन का आनंद है।
• पढ़े तो हैं पर गुने नहीं
– पढ़-लिखकर भी अनुभवहीन।
• पढ़े फारसी बेचे तेल
– गुणवान होने पर भी दुर्भाग्यवश छोटा काम मिलना।
• पत्थर को जोंक नहीं लगती
– निर्दयी आदमी दयावान नहीं बन सकता।
• पत्थर मोम नहीं होता
– निर्दयी आदमी दयावान नहीं बन सकता।
• पराया घर थूकने का भी डर
– दूसरे के घर में संकोच रहता है।
• पराये धन पर लक्ष्मीनारायण
– दूसरे के धन पर गुलछर्रें उड़ाना।
• पहले तोलो, फिर बोलो
– सोच-समझकर मुँह खोलना चाहिए।
• पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा
– मिलकर काम करने पर हार-जीत की जिम्मेदारी एक पर नहीं आती।
• पाँचों उँगलियाँ घी में
– चौतरफा लाभ।
• पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं
– सब आदमी एक जैसे नहीं होते।
• पागलों के क्या सींग होते हैं
– पागल भी साधारण मनुष्य होता है।
• पानी केरा बुलबुला अस मानुस के जात
– जीवन नश्वर है।
• पानी पीकर जात पूछते हो
– काम करने के बाद उसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करना।
• पाप का घड़ा डूब कर रहता है
– पाप जब बढ़ जाता है तब विनाश होता है।
• पिया गए परदेश, अब डर काहे का
– जब कोई निगरानी करने वाला न हो, तो मौज उड़ाना।
• पीर बावर्ची भिस्ती खर
– किसी एक के द्वारा ही सभी तरह के काम करना।
• पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं
– वर्तमान लक्षणों से भविष्य का अनुमान लग जाता है।
• पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय
– सपूत स्वयं कमा लेगा, कपूत संचित धन को उड़ा देगा।
• पूरब जाओ या पच्छिम, वही करम के लच्छन
– स्थान बदलने से भाग्य और स्व‍भाव नहीं बदलता।
• पेड़ फल से जाना जाता है
– कर्म का महत्व उसके परिणाम से होता है।
• प्यासा कुएँ के पास जाता है
– बिना परिश्रम सफलता नहीं मिलती।
• फिसल पड़े तो हर गंगे
– बहाना करके अपना दोष छिपाना।
• बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
– ज्ञान न होना।
• बकरे की जान गई खाने वाले को मज़ा नहीँ आया
– भारी काम करने पर भी सराहना न मिलना।
• बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है
– शक्तिशाली व्यक्ति निर्बल को दबा लेता है।
• बड़े बरतन का खुरचन भी बहुत है
– जहाँ बहुत होता है वहाँ घटते-घटते भी काफी रह जाता है।
• बड़े बोल का सिर नीचा
– घमंड करने वाले को नीचा देखना पड़ता है।
• बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात
– छोटा आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता।
• बनी के सब यार हैं
– अच्छे दिनों में सभी दोस्त बनते हैं।
• बरतन से बरतन खटकता ही है
– जहाँ चार लोग होते हैं वहाँ कभी अनबन हो सकती है।
• बहती गंगा में हाथ धोना
– मौके का लाभ उठाना।
• बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा
– पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है।
• बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे
– रक्षक का भक्षक हो जाना।
• बाप भला न भइया, सब से भला रूपइया
– धन ही सबसे बड़ा होता है।
• बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़
– छोटे का बड़े से बढ़ जाना।
• बाप से बैर, पूत से सगाई
– पिता से दुश्मनी और पुत्र से लगाव।
• बारह गाँव का चौधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव
– बड़ा होकर यदि किसी के काम न आए, तो बड़प्पन व्यर्थ है।
• बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं
– एक न एक दिन अच्छे दिन आ ही जाते हैं।
• बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता
– काम करने के लिए शक्ति का होना आवश्यक होता है।
• बासी बचे न कुत्ता खाय
– जरूरत के अनुसार ही सामान बनाना।
• बिंध गया सो मोती, रह गया सो सीप
– जो वस्तु काम आ जाए वही अच्छी।
• बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले
– मूर्खतापूर्ण कार्य करना।
• बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती
– बिना यत्न किए कुछ भी नहीं मिलता।
• बिल्ली और दूध की रखवाली?
– भक्षक रक्षक नहीं हो सकता।
• बिल्ली के सपने में चूहा
– जरूरतमंद को सपने में भी जरूरत की ही वस्तु दिखाई देती है।
• बिल्ली गई चूहों की बन आयी
– डर खत्म होते ही मौज मनाना।
• बीमार की रात पहाड़ बराबर
– खराब समय मुश्किल से कटता है।
• बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम
– वय के हिसाब से ही काम करना चाहिए।
• बुढ़ापे में मिट्टी खराब
– बुढ़ापे में इज्जत में बट्टा लगना।
• बुढिया मरी तो आगरा तो देखा
– प्रत्येक घटना के दो पहलू होते हैं– अच्छा और बुरा।
• बूँद-बूँद से घड़ा भरता है
– थोड़ा-थोड़ा जमा करने से धन का संचय होता है।
• बूढे तोते भी कही पढ़ते हैं
– बुढ़ापे में कुछ सीखना मुश्किल होता है।
• बिल्ली के भागों छींका टूटा
– सौभाग्य।
• बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय
– जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
• भरी गगरिया चुपके जाय
– ज्ञानी आदमी गंभीर होता है।
• भरे पेट शक्कर खारी
– समय के अनुसार महत्व बदलता है।
• भले का भला
– भलाई का बदला भलाई में मिलता है।
• भलो भयो मेरी मटकी फूटी मैं दही बेचने से छूटी
– काम न करने का बहाना मिल जाना।
• भलो भयो मेरी माला टूटी राम जपन की किल्लत छूटी
– काम न करने का बहाना मिल जाना।
• भागते भूत की लँगोटी ही सही
– कुछ न मिलने से कुछ मिलना अच्छा है।
• भीख माँगे और आँख दिखाए
– दयनीय होकर भी अकड़ दिखाना।
• भूख लगी तो घर की सूझी
– जरूरत पड़ने पर अपनों की याद आती है।
• भूखे भजन न होय गोपाला
– भूख लगी हो तो भोजन के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं सूझता।
• भूल गए राग रंग भूल गई छकड़ी, तीन चीज़ याद रहीं नून तेल लकड़ी
– गृहस्थीं के जंजाल में फँसना।
• भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय
– मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करना बेकार है।
• भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा
– जो तंग करे उसको कुछ दे-दिला के चुप करा दो।
• मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है
– गुण जन्मजात आते हैं।
• मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा
– प्रेयसी की हर चीज प्रेमी को प्यारी लगती है।
• मतलबी यार किसके, दम लगाया खिसके
– स्वार्थी व्यक्ति को अपना स्वार्थ साधने से काम रहता है।
• मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती
– इच्छा करने मात्र से ही इच्छापूर्ति नहीं होती।
• मन चंगा तो कठौती में गंगा
– मन की शुद्धता ही वास्तविक शुद्धता है।
• मरज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों इलाज करता गया
– सुधार के बजाय बिगाड़ होना।
• मरता क्या न करता
– मजबूरी में आदमी सब कुछ करना पड़ता है।
• मरी बछिया बांभन के सिर
– व्यर्थ दान।
• मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जलाय
– बहुत अधिक नजदीकी होने पर कद्र घट जाती है।
• माँ का पेट कुम्हार का आवा
– संताने सभी एक-सी नहीं होती।
• माँगे हरड़, दे बेहड़ा
– कुछ का कुछ करना।
• मान न मान मैं तेरा मेहमान
– ज़बरदस्ती का मेहमान।
• मानो तो देवता नहीं तो पत्थर
– माने तो आदर, नहीं तो उपेक्षा।
• माया से माया मिले कर-कर लंबे हाथ
– धन ही धन को खींचता है।
• माया बादल की छाया
– धन-दौलत का कोई भरोसा नहीं।
• मार के आगे भूत भागे
– मार से सब डरते हैँ।
• मियाँ की जूती मियाँ का सिर
– दुश्मन को दुश्मन के हथियार से मारना।
• मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं
– बातों से पेट नहीं भरता।
• मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू-थू
– मतलबी होना।
• मुँह में राम बगल में छुरी
– ऊपर से मित्र भीतर से शत्रु।
• मुँह माँगी मौत नहीं मिलती
– अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता।
• मुफ्त की शराब काज़ी को भी हलाल
– मुफ्त का माल सभी ले लेते हैं।
• मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक
– सीमित दायरा।
• मोरी की ईंट चौबारे पर
– छोटी चीज का बड़े काम में लाना।
• म्याऊँ के ठोर को कौन पकड़े
– कठिन काम कोई नहीं करना चाहता।
• यह मुँह और मसूर की दाल
– औकात का न होना।
• रंग लाती है हिना पत्थर पे घिसने के बाद
– दु:ख झेलकर ही आदमी का अनुभव और सम्मान बढ़ता है।
• रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई
– घमण्ड का खत्म न होना।
• राजा के घर मोतियों का अकाल?
– समर्थ को अभाव नहीं होता।
• रानी रूठेगी तो अपना सुहाग लेगी
– रूठने से अपना ही नुकसान होता है।
• राम की माया कहीं धूप कहीं छाया
– कहीं सुख है तो कहीं दुःख है।
• राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी
– बराबर का मेल हो जाना।
• राम राम जपना पराया माल अपना
– ऊपर से भक्त, असल में ठग।
• रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना
– रोज कमाना रोज खाना।
• रोगी से बैद
– भुक्तभोगी अनुभवी हो जाता है।
• लड़े सिपाही नाम सरदार का
– काम का श्रेय अगुवा को ही मिलता है।
• लड्डू कहे मुँह मीठा नहीं होता
– केवल कहने से काम नहीं बन जाता।
• लातों के भूत बातों से नहीं मानते
– मार खाकर ही काम करने वाला।
• लाल गुदड़ी में नहीं छिपते
– गुण नहीं छिपते।
• लिखे ईसा पढ़े मूसा
– गंदी लिखावट।
• लेना एक न देना दो
– कुछ मतलब न रखना।
• लोहा लोहे को काटता है
– प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग होता है।
• वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है
– वहम सबसे बुरा रोग है।
• विष को सोने के बरतन में रखने से अमृत नहीं हो जाता
– किसी चीज़ का प्रभाव बदल नहीं सकता।
• शौकीन बुढिया मलमल का लहँगा
– अजीब शौक करना।
• शक्करखोरे को शक्कर मिल ही जाता है
– जुगाड़ कर लेना।
• सकल तीर्थ कर आई तुमड़िया तौ भी न गयी तिताई
– स्वाभाव नहीं बदलता।
• सख़ी से सूम भला जो तुरन्त दे जवाब
– लटका कर रखने वाले से तुरन्त इंकार कर देने वाला अच्छा।
• सच्चा जाय रोता आय, झूठा जाय हँसता आय
– सच्चा दुखी, झूठा सुखी।
• सबेरे का भूला सांझ को घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता
– गलती सुधर जाए तो दोष नहीं कहलाता।
• समय पाइ तरूवर फले केतिक सीखे नीर
– काम अपने समय पर ही होता है।
• समरथ को नहिं दोष गोसाई
– समर्थ आदमी का दोष नहीं देखा जाता।
• ससुराल सुख की सार जो रहे दिना दो चार
– रिश्तेदारी में दो चार दिन ठहरना ही अच्छा होता है।
• सहज पके सो मीठा होय
– धैर्य से किया गया काम सुखकर होता है।
• साँच को आँच नहीं
– सच्चे आदमी को कोई खतरा नहीं होता।
• साँप के मुँह में छछूँदर
– कहावत दुविधा में पड़ना।
• साँप निकलने पर लकीर पीटना
– अवसर बीत जाने पर प्रयास व्यर्थ होता है।
• सारी उम्र भाड़ ही झोँका
– कुछ भी न सीख पाना।
• सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है
– जाँच के लिए थोड़ा-सा नमूना ले लिया जाता है।
• सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है
– परिस्थिति को न समझना।
• सावन हरे न भादों सूखे
– सदा एक सी दशा।
• सिंह के वंश में उपजा स्यार
– बहादुरों की कायर सन्तान।
• सिर फिरना
– उल्टी-सीधी बातें करना।
• सीधे का मुँह कुत्ता चाटे
– सीधेपन का लोग अनुचित लाभ उठाते हैं।
• सुनते-सुनते कान पकना
– बार-बार सुनकर तंग आ जाना।
• सूत न कपास जुलाहे से लठालठी
– अकारण विवाद।
• सूरज धूल डालने से नहीं छिपता
– गुण नहीं छिपता।
• सूरदास की काली कमरी चढ़े न दूजो रंग
– स्वभाव नहीं बदलता।
• सेर को सवा सेर
– बढ़कर टक्कर देना।
• सौ दिन चोर के, एक दिन साहूकार का
– चोरी एक न एक दिन खुल ही जाती है।
• सौ सुनार की एक लोहार की
– सुनार की हथौड़ी के सौ मार से भी अधिक लुहार के घन का एक मार होता है।
• हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है
– गरज पर सबको झुकना पड़ता है।
• हथेली पर दही नहीँ जमता
– कार्य होने मेँ समय लगता है।
• हड्डी खाना आसान पर पचाना मुश्किल
– रिश्वत कभी न कभी पकड़ी ही जाती है।
• हर मर्ज की दवा होती है
– हर बात का उपाय है।
• हराम की कमाई हराम में गँवाई
– बेईमानी का पैसा बुरे कामों में जाता है।
• हवन करते हाथ जलना
– भलाई के बदले कष्ट पाना।
• हल्दी लगे न फिटकरी रंग आए चोखा
– बिना कुछ खर्च किए काम बनाना।
• हाथ सुमरनी पेट/बगल कतरनी
– ऊपर से अच्छा भीतर से बुरा।
• हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या
– प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीँ।
• हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और
– भीतर और बाहर में अंतर होना।
• हाथी निकल गया दुम रह गई
– थोड़े से के लिए काम अटकना।
• हिजड़े के घर बेटा होना
– असंभव बात।
• हीरे की परख जौहरी जानता है
– गुणवान ही गुणी को पहचान सकता है।
• होनहार बिरवान के होत चीकने पात
– अच्छे गुण आरम्भ में ही दिखाई देने लगते हैं।
• होनी हो सो होय
– जो होनहार है, वह होगा ही।

 

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मेरे विचार……. दीपक की लौ आकार में भले ही छोटी हो, लेकिन उसकी चमक और रोशनी दूर तक जाती ही है। एक अच्छा शिक्षक वही है जिसके पास पूछने आने के लिए छात्र उसी प्रकार तत्पर रहें जिस प्रकार माँ की गोद में जाने के लिए रहते हैं। मेरे विचार में अध्यापक अपनी कक्षा रूपी प्रयोगशाला का स्वयं वैज्ञानिक होता है जो अपने छात्रों को शिक्षित करने के लिए नव नव प्रयोग करता है। आपका दृष्टिकोण व्यापक है आपके प्रयास सार्थक हैं जो अन्य अध्यापकों को भी प्रेरित कर सकते हैं… संयोग से कुछ ऐसी कार्ययोजनाओं में प्रतिभाग करने का मौका मिला जहाँ भाषा शिक्षण के नवीन तरीकों पर समझ बनी। इस दौरान कुछ नए साथियों से भी मिलना हुआ। उनसे भी भाषा की नई शिक्षण विधियों पर लगातार संवाद होता रहा। साहित्य में रुचि होने के कारण हमने अब शिक्षा से सम्‍बन्धित साहित्य पढ़ना शुरू किया। कोई बच्चा बहुत से लोकप्रिय तरीके से सीखता है तो कोई बच्चा अपने विशिष्ट तरीके से किसी विषय को ग्रहण करता है और अपने तरीके से उस पर अपनी समझ का निर्माण करता है। इसी सन्‍दर्भ में बच्चों के मनोविज्ञान को समझने की जरूरत है। मनोविज्ञान को मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों और व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में देखा जाता है। इसी नजरिये से शिक्षा मनोविज्ञान को भी क्लासरूम के व्यावहारिक परिदृश्य के सन्‍दर्भ में देखने की आवश्यकता है। यहाँ गौर करने वाली बात है, “स्कूल में बच्चों को पढ़ाते समय केवल कुछ बच्चों पर ध्यान देने से हम बच्चों का वास्तविक आकलन नहीं कर पाते कि वे क्या सीख रहे हैं? उनको किसी बात को समझने में कहाँ दिक्कत हो रही है? किस बच्चे को किस तरह की मदद की जरूरत है। किस बच्चे की क्या खूबी है। किस बच्चे की प्रगति सही दिशा में हो रही है। कौन सा बच्चा लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और उसे आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र रूप से पढ़ने और काम करने के ज़्यादा मौके देने की जरूरत है।” एक शिक्षक को बच्चों के आँसू और बच्चों की खुशी दोनों के लिए सोचना चाहिए। बतौर शिक्षक हम बच्चों के पठन कौशल , समझ निर्माण व जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण का निर्माण कर रहे होते हैं। अपने व्यवहार से बच्चों की जिंदगी में एक छाप छोड़ रहे होते हैं। ऐसे में हमें खुद को वक्‍त के साथ अपडेट करने की जरूरत होती है। इसके लिए निरन्‍तर पढ़ना, लोगों से संवाद करना, शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले भावी बदलावों को समझना बेहद जरूरी है। ताकि आप समय के साथ कदमताल करते हुए चल सकें और भावी नागरिकों के निर्माण का काम ज्यादा जिम्मेदारी और सक्रियता के साथ कर सकें। इस बारे में संक्षेप में कह सकते हैं कि बतौर शिक्षक हमें खुद भी लगातार सीखने का प्रयास जारी रखना चाहिए। आज के शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है। पुस्तक जहाँ पहले ज्ञान का प्रमाणिक स्रोत और संसाधन हुआ करता था आज वहाँ तकनीक के कई साधन मौजूद हैं। आज विद्‌यार्थी किताबों की श्याम-श्वेत दुनिया से बाहर निकलकर सूचना और तकनीक की रंग-बिरंगी दुनिया में पहुँच चुका है, जहाँ माउस के एक क्लिक पर उसे दुनिया भर की जानकारी दृश्य रूप में प्राप्त हो जाती है। एक शिक्षक होने के नाते यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि हम समय के साथ खुद को ढालें और शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुचारू रूप से गतिशील बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीक के साधनों का भरपूर प्रयोग करें। यदि आप अपनी कक्षा में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल करते हुए विद्‌यार्थी-केन्द्रित शिक्षण को प्रोत्साहित करते हैं तो आपकी कक्षा में शैक्षणिक वातावरण का विकास होता है और विद्‌यार्थी अपने अध्ययन में रुचि लेते हैं। यह ब्लॉग एक प्रयास है जिसका उददेश्य है कि इतने वर्षों में हिंदी अध्ययन तथा अध्यापन में जो कुछ मैंने सीखा सिखाया । उसे अपने विद्यार्थियों और मित्रों से साझा कर सकूँ यह विद्यार्थियों तथा हमारे बीच एक अखंड श्रृंखला का कार्य करेगा। मै अपनी ग़ैरमौजूदगी में भी अपने ज़रूरतमंद विद्यार्थियों के बहुत पास रहूँगा …… मेरा प्रयास है कि अपने विद्यार्थी समुदाय तथा कक्षा शिक्षण को मैं आधुनिक तकनीक से जोड़ सकूँ जिससे हर एक विद्यार्थी लाभान्वित हो सके …