चित्र-वर्णन 

चित्र-वर्णन

चित्र पर आधारित प्रस्ताव लिखना भी एक कला है। चित्र को देखकर हम अपने भावों, विचारों और घटनाओं को व्यक्त कर सकते हैं। इसीलिए चित्रों का रचनात्मक क्षेत्रों में विशेष महत्त्व है। बच्चों की अभिव्यक्ति कला के विकास के लिए इस प्रकार के अभ्यास अत्यन्त आवश्यक हैं। जो विद्यार्थी जितना अधिक कुशाग्रबुद्धि*, भावुक, कल्पनाशील और चतुर होगा वह उतनी कुशलता से चित्रों का अध्ययन कर सकेगा। अक्सर यह माना जाता है कि चित्र पर आधारित प्रश्न प्रत्येक विद्यार्थी सरलता से कर लेगा। परन्तु ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है। क्योंकि चित्र-लेखन में सूक्ष्म अध्ययन एवं तीव्र पकड़ की अत्यन्त आवश्यकता होती है। अधिकतर विद्यालयों में चित्र-लेखन का अभ्यास नहीं कराया जाता क्योंकि उनकी मान्यता है कि चित्र-लेखन में छात्रों को संक्षिप्त प्रस्ताव की अपेक्षा कम अंक मिलते हैं जबकि यह सोच पूर्णत: भ्रामक एवं निराधार है। परीक्षा में एक चित्र दिया जाता है तथा छात्रों से आशा की जाती है। कि वे उसका सूक्ष्म अवलोकन करके जो भी विचार उनके मन में उठें उन्हें कहानी, जीवनी, निबन्ध, आत्मकथा, कविता एवं एकांकी आदि के माध्यम से सरल एवं स्पष्ट शब्दों में अभिव्यक्त करें। चित्र-लेखन से पूर्व स्मरणीय तथ्य निम्नांकित हैं जिन पर विद्यार्थियों को ध्यान देना एवं उनका पालन करना अनिवार्य है।

इसे पढ़कर छात्र भावों की सूक्ष्मता, दृष्टि की गहराई, उसकी पकड तथा वस्तु-स्थिति को संध रूप से ग्रहण करने की शक्ति पा सकें। हमें आशा ही नहीं विश्वास भी है कि हमारा यह प्रयास छात्रों को चित्र-लेखन में अधिक अंक प्राप्त कराने में सहायक होगा।

 

  •  चित्र को सूक्ष्मता से देखें और उसमें छिपी सभी बारीकियों का अवलोकन करें।
  •  मन में विभिन्न प्रकार के प्रश्न एवं उत्तर बना-बना कर उस चित्र को लगभग 5 मिनट तक अवश्य देखें।
  •  चित्र में दिखाई देने वाले लोगों के चेहरों के भावों, पहनावे, हाव-भाव तथा क्रियाओं पर विचार करें और उनके कारणों पर ध्यान केन्द्रित करें।
  • पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, सूरज-चाँद आदि की उपस्थिति और उनका चित्र से सम्बन्ध समझने का प्रयत्न करें।
  • चित्र का अध्ययन करके और उसे समझ कर विद्यार्थी अपनी सूझ-बूझ और कल्पना शक्ति का प्रयोग कर सकता है परन्तु ऐसा करते समय उसे अत्यन्त जागरूक रहना हागा। उसे ध्यान रखना हो कि कल्पना के कारण उसका वर्णन चित्र में दिखाई गई मूल न वास्तविक घटनाओं से कहीं दूर न चला जाए।
  • प्रथम अनुच्छेद में आप जो भी चित्र में देख रहे हैं उसका पर्ण एवं सूक्ष्म वर्णन क्रम से सरल भाषा में लिखें।
  • उसी क्रम में अपने लेखन का विस्तार करते हुए चित्र से सम्बन्ध रखना न भूलें।
  • चित्र-लेखन आप या तो वातावरण के आधार पर कीजिए या व्यक्ति विशेष के आधार पर। पर याद रहे कि आपके लेखन का सीधा सम्बन्ध चित्र से हो।
  • चित्र लेखन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है-चित्र की घटनाओं का  रोचक एवं सजीव वर्णन जो सरल, सहज एवं प्रभावोत्पादक भाषा शैली में होना चाहिए।
  • वाक्य छोटे-छोटे हों और प्रत्येक नवीन विचार नए अनुच्छेद से प्रारंभ होना चाहिए।
  • जो भी बातें आपको चित्र में नजर आ रही हों उन्हें अलग से लिख लेना चाहिए।
  • यदि चित्र में व्यक्ति दिखाई दे रहे हों तो उनके चेहरों के भावों के आधार पर सुख-दुःख आदि भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए।
  • वाक्य रचना करते समय उक्तियों, मुहावरों व् लोकोक्तियों का प्रयोग भी आपकी भाषा को सुंदर और प्रभावशाली बनाने में सहायक होते हैं।
  • चित्र-वर्णन करते समय आपके सभी वाक्य चित्र से सम्बंधित होने चाहिए।
  • चित्र-वर्णन में अनावश्यक बातों को नहीं लिखना चाहिए।
  • चित्र में जितनी भी चीजें दिख रही हों सभी का वर्णन होना चाहिए।
  • यदि चित्र के साथ शब्द भी दे रखे हों तो उन सभी शब्दों का प्रयोग आपके वाक्यों में हो जाना चाहिए।
  • वाक्य रचना करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि आप केवल वर्तमान समय में ही वाक्य रचना करें।
  • पहले वाक्य में बताएँ कि ‘दृश्य किसका है’ और अगले वाक्य में ‘दृश्य में क्या-क्या हो रहा है’ ये बताएँ।
  • इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि विषय और वाक्य में क्रमबद्धता होनी चाहिए।

 

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मेरे विचार……. दीपक की लौ आकार में भले ही छोटी हो, लेकिन उसकी चमक और रोशनी दूर तक जाती ही है। एक अच्छा शिक्षक वही है जिसके पास पूछने आने के लिए छात्र उसी प्रकार तत्पर रहें जिस प्रकार माँ की गोद में जाने के लिए रहते हैं। मेरे विचार में अध्यापक अपनी कक्षा रूपी प्रयोगशाला का स्वयं वैज्ञानिक होता है जो अपने छात्रों को शिक्षित करने के लिए नव नव प्रयोग करता है। आपका दृष्टिकोण व्यापक है आपके प्रयास सार्थक हैं जो अन्य अध्यापकों को भी प्रेरित कर सकते हैं… संयोग से कुछ ऐसी कार्ययोजनाओं में प्रतिभाग करने का मौका मिला जहाँ भाषा शिक्षण के नवीन तरीकों पर समझ बनी। इस दौरान कुछ नए साथियों से भी मिलना हुआ। उनसे भी भाषा की नई शिक्षण विधियों पर लगातार संवाद होता रहा। साहित्य में रुचि होने के कारण हमने अब शिक्षा से सम्‍बन्धित साहित्य पढ़ना शुरू किया। कोई बच्चा बहुत से लोकप्रिय तरीके से सीखता है तो कोई बच्चा अपने विशिष्ट तरीके से किसी विषय को ग्रहण करता है और अपने तरीके से उस पर अपनी समझ का निर्माण करता है। इसी सन्‍दर्भ में बच्चों के मनोविज्ञान को समझने की जरूरत है। मनोविज्ञान को मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों और व्यवहार के वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में देखा जाता है। इसी नजरिये से शिक्षा मनोविज्ञान को भी क्लासरूम के व्यावहारिक परिदृश्य के सन्‍दर्भ में देखने की आवश्यकता है। यहाँ गौर करने वाली बात है, “स्कूल में बच्चों को पढ़ाते समय केवल कुछ बच्चों पर ध्यान देने से हम बच्चों का वास्तविक आकलन नहीं कर पाते कि वे क्या सीख रहे हैं? उनको किसी बात को समझने में कहाँ दिक्कत हो रही है? किस बच्चे को किस तरह की मदद की जरूरत है। किस बच्चे की क्या खूबी है। किस बच्चे की प्रगति सही दिशा में हो रही है। कौन सा बच्चा लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और उसे आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र रूप से पढ़ने और काम करने के ज़्यादा मौके देने की जरूरत है।” एक शिक्षक को बच्चों के आँसू और बच्चों की खुशी दोनों के लिए सोचना चाहिए। बतौर शिक्षक हम बच्चों के पठन कौशल , समझ निर्माण व जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण का निर्माण कर रहे होते हैं। अपने व्यवहार से बच्चों की जिंदगी में एक छाप छोड़ रहे होते हैं। ऐसे में हमें खुद को वक्‍त के साथ अपडेट करने की जरूरत होती है। इसके लिए निरन्‍तर पढ़ना, लोगों से संवाद करना, शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले भावी बदलावों को समझना बेहद जरूरी है। ताकि आप समय के साथ कदमताल करते हुए चल सकें और भावी नागरिकों के निर्माण का काम ज्यादा जिम्मेदारी और सक्रियता के साथ कर सकें। इस बारे में संक्षेप में कह सकते हैं कि बतौर शिक्षक हमें खुद भी लगातार सीखने का प्रयास जारी रखना चाहिए। आज के शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है। पुस्तक जहाँ पहले ज्ञान का प्रमाणिक स्रोत और संसाधन हुआ करता था आज वहाँ तकनीक के कई साधन मौजूद हैं। आज विद्‌यार्थी किताबों की श्याम-श्वेत दुनिया से बाहर निकलकर सूचना और तकनीक की रंग-बिरंगी दुनिया में पहुँच चुका है, जहाँ माउस के एक क्लिक पर उसे दुनिया भर की जानकारी दृश्य रूप में प्राप्त हो जाती है। एक शिक्षक होने के नाते यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि हम समय के साथ खुद को ढालें और शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुचारू रूप से गतिशील बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीक के साधनों का भरपूर प्रयोग करें। यदि आप अपनी कक्षा में सूचना और तकनीक का इस्तेमाल करते हुए विद्‌यार्थी-केन्द्रित शिक्षण को प्रोत्साहित करते हैं तो आपकी कक्षा में शैक्षणिक वातावरण का विकास होता है और विद्‌यार्थी अपने अध्ययन में रुचि लेते हैं। यह ब्लॉग एक प्रयास है जिसका उददेश्य है कि इतने वर्षों में हिंदी अध्ययन तथा अध्यापन में जो कुछ मैंने सीखा सिखाया । उसे अपने विद्यार्थियों और मित्रों से साझा कर सकूँ यह विद्यार्थियों तथा हमारे बीच एक अखंड श्रृंखला का कार्य करेगा। मै अपनी ग़ैरमौजूदगी में भी अपने ज़रूरतमंद विद्यार्थियों के बहुत पास रहूँगा …… मेरा प्रयास है कि अपने विद्यार्थी समुदाय तथा कक्षा शिक्षण को मैं आधुनिक तकनीक से जोड़ सकूँ जिससे हर एक विद्यार्थी लाभान्वित हो सके …

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