एकांकीकार – डॉ. रामकुमार वर्मा
एकांकीकार का परिचय –
रामकुमार वर्मा (जन्म: 15 सितंबर, 1905; मृत्यु: 1990) आधुनिक हिन्दी साहित्य में ‘एकांकी सम्राट’ के रूप में जाने जाते हैं। डॉ. रामकुमार वर्मा हिन्दी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार और हास्य कवि के रूप में जाने जाते हैं। रामकुमार वर्मा की हास्य और व्यंग्य दोनों विधाओं में समान रूप से पकड़ है। नाटककार और कवि के साथ-साथ उन्होंने समीक्षक, अध्यापक तथा हिन्दी-साहित्य के इतिहास-लेखक के रूप में भी हिन्दी साहित्य-सर्जन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। रामकुमार वर्मा एकांकीकार, आलोचक और कवि हैं। इनके काव्य में ‘रहस्यवाद’ और ‘छायावाद’ की झलक है।डॉ. रामकुमार वर्मा एक बहुत ही प्रसिद्ध नाटककार के रूप में जाने जाते हैं। इन्हें हिन्दी साहित्य में एकांकी के जन्मदाता के रूप में जाना जाता है। आपने सामाजिक, ऐतिहासिक एवं पौराणिक- सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट नाटक लिखे। इनका पहला एकांकी संग्रह ‘पृथ्वीराज की आँखें’ 1936 में प्रकाशित हुआ। ‘रेशमी टाई’, ‘चारुमित्रा’, ‘सप्तकिरण’, ‘कौमुदी महोत्सव’, ‘दीपदान’, ‘जौहर’, ‘जूही के फूल’, ‘पृथ्वीराज की आँखें’ इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
कृतियाँ –
रूस में रामकुमार वर्मा की रचनाएँ सन् 1922 ई. से प्रारम्भ हुईं। इनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं:-
• ‘वीर हमीर’ (काव्य-सन 1922 ई.)
• ‘चित्तौड़ की चिंता’ (काव्य सन् 1929 ई.)
• ‘साहित्य समालोचना’ (सन 1929 ई.)
• ‘अंजलि’ (काव्य-सन 1930 ई.)
• ‘अभिशाप’ (कविता-सन 1931 ई.)
• ‘हिन्दी गीतिकाव्य’ (संग्रह-सन 1931 ई.)
• ‘निशीथ’ (कविता-सन 1935 ई.)
• ‘चित्ररेखा’ (कविता-सन 1936 ई.)
• ‘पृथ्वीराज की आँखें’ (एकांकी संग्रह-सन 1938 ई.)
• ‘कबीर पदावली’ (संग्रह सम्पादन-सन 1938 ई.)
• ‘हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ (सन 1939 ई.)
• ‘आधुनिक हिन्दी काव्य’ (संग्रह सम्पादन-सन 1939 ई.)
• ‘जौहर’ (कविता संग्रह- 1941 ई.)
• ‘रेशमी टाई’ (एकांकी संग्रह-सन 1941 ई.)
• ‘शिवाजी’ (सन 1943 ई.)
• ‘चार ऐतिहासिक एकांकी’ (संग्रह-सन 1950 ई.)
• ‘रूपरंग’ (एकांकी संग्रह-सन 1951 ई.)
• ‘कौमुदी महोत्सव’
ऐतिहासिक नाटक
• ‘एकलव्य’
• ‘उत्तरायण’
• ‘ओ अहल्या’
पात्र-परिचय
- कुँवर उदयसिंह- महाराणा साँगा के सबसे छोटे पुत्र। अवस्था 14 वर्ष
- पन्ना- कुँव्र उदयसिंह की धाय माँ। अवस्था 30 वर्ष
- चन्दन- धाय माँ पन्ना का पुत्र, अवस्था 13 वर्ष
- बनवीर-महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र। अवस्था 32 वर्ष।
- सोना-रावल सरूप सिंह की पुत्री, अवस्था 16 वर्ष।
- सामली- अन्त:पुर की परिचारिका, अवस्था 28 वर्ष।
- कीरत- जूठी पत्तलें उठाने वाला बारी, अवस्था 40 वर्ष।
एकांकी का काल- सन् 1536
सारांश – सुप्रसिद्ध एकांकीकार डॉ० रामकुमार वर्मा द्वारा लिखित लोकप्रिय एकांकी ‘दीपदान’ एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है। इसमें राजपूताने की एक वीर क्षत्राणी पन्ना धाय के अभूतपूर्व बलिदान काअत्यन्त सजीव एवं मार्मिक चित्रण किया गया है|।एकांकी का आरम्भ पर्दे के पीछे से आती नारियों की सम्मिलित नृत्य ध्वनि, मृदंग और कड़खे की आवाज़ से शुरू होता है। सभी नृत्यांगनाएँ तुलजा भवानी की पूजा में दीपदान करके नाच रहीं हैं। घटनाक्रम इस प्रकार है-महाराणा साँगा को मृत्यु के बाद उनका पुत्र उदयसिंह राज-सिंहासन का उत्तराधिकारी था। पर उसकी उम्र अभी मात्र 14 साल थी, इसलिए महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर को राज्य की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया था बनवीर स्वभाव से ही कुटिल था। वह धीरे-धीरे राज्य को पूरी तरह से हड़प लेने की योजना बनाने लगा उसने एक बार रात्रि में दीपदान का उत्सव मनाने के बहाने से नृत्य और संगीत का भव्य आयोजन करवाया।
प्रजाजन को इस समारोह में व्यस्त रखकर उसने कुँवर उदयसिंह की हत्या की योजना बना ली। पर कुँवर की देखभाल करने वाली धाय माँ पन्ना को इस षड्यंत्र का पता चल। गया। उसने बड़ी ही सावधानी और चतुराई से कुँवर को टोकरी में छिपाकर राजभवन से बाहर एक सुरक्षित जगह पर भेज दिया। कुँवर की शैय्या पर उसने अपने इकलौते पुत्र चन्दन को सुला दिया।
इधर बनवीर ने पहले महाराणा विक्रमादित्य की हत्या की और उसके बाद वह रक्त-रंजित तलवार लिए कुँवर उदयसिंह के कक्ष में आया। उसने पन्ना को मारवाड़ में एक जागीर देकर अपनी योजना में शामिल करना चाहा, लेकिन वीर क्षत्राणी ने निर्भीकता से उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। नशे में लड़खड़ाते हुए बनवीर ने पन्ना से उदयसिंह के बारे में पूछा। अपने कलेजे पर पत्थर रखकर पन्ना ने कुँवर की शय्या पर सोए हुए चन्दन की ओर इशारा कर दिया। सत्ता के लालच में अन्धे बनवीर ने कहा – “आज मेरे नगर में स्त्रियों ने दीपदान किया है। मैं भी यमराज को इस दीपक का दान करूँगा। यमराज, लो यह मेरा दीपदान है और उधर पन्ना धाय ने अपने जीवन के इकलौते दीप का दान करके चित्तौड़ के इकलौते दीपक कुँवर उदयसिंह के जीवन को बचा लिया। अपने बेटे की बलि चढ़ाकर उसने मेवाड़ के सिंहासन और उसके उत्तराधिकारी की रक्षा की।
उद्देश्य –
प्रस्तुत एंकाकी ‘दीपदान’ का उद्देश्य बहुत ही स्पष्ट तथा सार्थक है। इसमें पन्ना धाय के अपूर्व त्याग एवं बलिदान की भावना तथा स्वामी-भवित को अभिव्यक्त किया गया है। इस एकांकी के माध्यम से लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा ने चित्तौड़ के सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेश का जीवंत चित्रण किया है| राजपूत बड़ी निर्भीकता एवं वीरता से अपनी जान देकर भी देश की आन-बान और शान की रक्षा करते थे। दूसरी ओर लेखक ने यह भी दिखाना चाहा है कि किस प्रकार मनुष्य लालच में अन्धा होकर अपना विवेक खो बैठता है। लालची मनुष्य अपनी मर्यादा, कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व को भुलाकर मानव से दानव भी बन जाता है। बनवीर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।इसके अतिरिक्त पन्ना धाय के त्याग एवं उदात्त चरित्र की गरिमा को हमारे समक्ष रखना भी लेखक का उद्देश्य है। पन्ना धाय के रूप में नारी की ममता, त्याग, कर्त्तव्यनिष्ठा तथा स्वामी-भक्ति का चित्रण करके लेखक ने मानवीय मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित किया है । पन्ना के चरित्र की महानता के समक्ष मानवता नतमस्तक हो जाती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि ‘दीपदान’ एकांकीं के माध्यम से एकांकीकार ने मनुष्य को स्वार्थी न बनने , लालच में अँधा न होने की प्रेरणा दी है । हम कभी अपने विवेक का त्याग न करें और अन्यायपूर्ण आचरण न करें ,यह बताना भी एकांकीकार का उद्देश्य है।निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर कर्त्तव्य पालन करना तथा समाज में आदर्श एवं मूल्यों की स्थापना करना भी इस एकांकी का उद्देश्य है। नि:सन्देह ‘दीपदान’ एक अत्यन्त शिक्षाप्रद एवं मार्मिक एकांकी है जो पाठकों पर अपना गहरा प्रभाव छोड़ने में सफल होता है।
शीर्षक की सार्थकता –
किसी भी रचना का शीर्षक उस रचना का प्रतिबिम्ब होता है तथा साथ ही उसके घटनाक्रम के अनुरूप होता है। ‘दीपदान’ शीर्षक भी सर्वथा इस एकांकी के अनुरूप है। एकांकी के प्रथम दृश्य में हम देखते हैं कि पर्दे के पीछे से नृत्यांगनाएँ तुलजा भवानी के मन्दिर में दीपदान करके नाच रहीं हैं। नृत्य ध्वनि व गीतों के सम्मिलित स्वरों के साथ-साथ दीपक छोटे से कुण्ड में नाचते दिखायी दे रहे हैं। इस रास-रंग से परे पन्ना धाय को बनवीर की कुटिलता तथा षड्यन्त्र की भनक लग जाती है कि वह कुँवर उदयसिंह को मार कर स्वयं राजा बनना चाहता है। वह समय न गँवाकर अपने पुत्र चन्दन को कुँवर की नर्म शय्या पर सुला देती है और जूठे पत्तल उठाने वाले कीरत बारी से कहकर कुँवर को उसके टोकरे में सुला देती है। कीरत कुँवर को महल से सुरक्षित बाहर निकाल ले जाता है।उधर नशे में चूर लड़खड़ाता बनवीर उदयसिंह के कक्ष में आता है।पन्ना से उदयसिंह के विषय में पूछने पर पन्ना अपनी उँगली से सोए हुए चन्दन की ओर इशारा कर देती है।बनवीर खून से सनी हुई तलवार निकालकर कहता है- ” आज मेरे नगर में स्त्रियों ने दीपदान किया है। मैं भी यमराज को इस दीपक का दान करूँगा। यमराज, लो यह मेरा दीपदान है।” इस प्रकार नगर में स्त्रियों ने अपनी खुशी के लिए दीपदान किए। बनवीर ने राज्य पाने के लिए तथा पन्ना ने देशप्रेम तथा कर्त्तव्य की खातिर दीप (कुलदीपक का) दान किया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘दीपदान’ शीर्षक पूर्णतया सार्थक, उचित तथा उद्देश्यपूर्ण है ।
चरित्र-चित्रण –
पन्ना-
पन्ना, ‘खीचो’ जाति की एक राजपूत महिला है। तीस-बत्तीस वर्ष की यह क्षत्राणी चित्तौड़ के महाराणा साँगा के छोटे पुत्र कुँवर उदयसिंह की धाय एवं संरक्षिका है। उसका एक पुत्र भी है जिसका नाम चन्दन है। वह कुँवर उदयसिंह का हमउम्र है। पन्ना एक अत्यन्त कर्त्तव्यनिष्ठ एवं ममतामयी धाय-माँ है जिसके बिना उदयसिंह पल भर भी नहीं रह पाते। वह बहुत ही समझदार, सहनशील युवती है जिसे कि बनवीर के षड्यन्त्र तथा चित्तौड़ पर आने वाली मुसीबत का पहले से अन्दाज़ा हो जाता है। जब सारा नगर दीपदान के महोत्सव एवं राग-रंग में डूबा था तब पन्ना कुँवर उदयसिंह के जीवन को बचाने की चिन्ता में अकेले ही हाथ-पाँव मार रही थी। अन्त:पुर की परिचारिका सामली के द्वारा उसे खबर मिलती है कि बनवीर ने महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर दी है। वह बड़ी समझदारी एवं दूरदर्शिता से किसी बड़ी अनहोनी का अनुमान लगाकर उदयसिंह की रक्षा का उपाय सोचने लगती है। बड़ी ही होशियारी एवं धैर्य के साथ वह सोते हुए उदयसिंह को कीरत बारी के टोकरे में सुरक्षित महल के बाहर भेज देती है। पन्ना धाय की कर्त्तव्यनिष्ठा की पराकाष्ठा हमें उस समय दिखायी देती है जब वह कुँवर उदयसिंह की शय्या पर अपने पुत्र चन्दन को सुला देती है। बनवीर के पूछने पर कि उदयसिंह कहाँ है वह अपने कलेजे पर पत्थर रख कर सोते हुए चन्दन की ओर संकेत कर देती है। उसी की आँखों के समक्ष बनवीर चन्दन को मौत के घाट उतार देता है और वह उफ़ तक नहीं करती। निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि पन्ना एक वीर क्षत्राणी है जिसके चरित्र में अद्भुत स्वामी-भक्ति, देशप्रेम, कर्त्तव्यनिष्ठा, अपार धैर्य,सहनशीलता बुद्धिमत्ता, ममता एवं त्याग जैसे गुण दिखायी देते हैं।इतिहास पन्ना के त्याग को कभी भुला नहीं सकता। उसका त्याग महान है।
कुँवर उदयसिंह –
उदयसिंह चित्तौड़ के स्वर्गीय महाराणा साँगा का छोटा पुत्र है। वह चित्तौड़ का उत्तराधिकारी है, पर अल्पवयस्क होने के कारण उसके संरक्षण का उत्तरदायित्व पन्ना धाय पर है। कुँवर उदयसिंह के बड़े (वयस्क) होने तक महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासी पुत्र बनवीर राजकाज चला रहा है। वह उदयसिंह को मारकर चित्तौड़ को हथियाना चाहता है। पन्ना को उसके कुटिल इरादों की भनक लग जाती है इसलिए वह हर मुसीबत से कुँवर की रक्षा करती कुँवर की अवस्था अभी चौदह वर्ष की है इसलिए उसमें बाल सुलभ ज़िद, चंचलता, शरारत, हठ तथा जिज्ञासा जैसे सभी गुण हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि चित्तौड़ का उत्तराधिकारी कुँवर उदयसिंह स्वभाव से चंचल, हठी एवं जिज्ञासु है।
बनवीर-
बनवीर को इस एकांकी में एक खलनायक के रूप में चित्रित किया गया है । वह महाराणा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासीपुत्र है। कुँवर उदयसिंह के अल्पवयस्क होने के कारण वह राज्य का संरक्षक है लेकिन लालच में अन्धा होकर वह चित्तौड़ के राज्य को हथियाना चाहता है। इसी लालच के कारण उसने पहले महाराणा विक्रमादित्य की हत्या की और अब वह कुँवर उदयसिंह को अपने रास्ते से सदा के लिए हटाना चाहता है। पन्ना की स्वामी-भक्ति तथा त्याग के कारण कुँवर उदयसिंह की जगह उसका अपना पुत्र चन्दन मार दिया जाता है। बनवीर यह समझता है कि उसने कुँवर उदयसिंह को मार दिया है।संक्षेप में कहा जा सकता है कि बनवीर के चरित्र में कुटिलता,लालच, ईर्ष्या डाह, क्रूरता कृतघ्नता, स्वार्थ जैसे अनेक दुर्गुण हैं। वह एक नीच और अधम इन्सान है जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है ।
चन्दन-
चन्दन एक तेरह वर्षीय किशोर है, जो कि धाय माँ पन्ना का इकलौता पुत्र है। वह अपनी माँ तथा कुँवर उदयसिंह से असीम प्रेम करता है। जब पन्ना कुँवर उदयसिंह को नृत्य देखने के लिए वहाँ जाने से मना करती है तो वे रूठकर बिना भोजन किए ही सो जाते हैं । माँ के द्वारा यह बात जब चन्दन को पता चलती है तो वह भी यह कहकर कि वह अगली सुबह कुँवर के साथ ही खाना खाएगा, बिना भोजन किए ही सो जाता है। पर दुर्भाग्य ! उसी रात निर्दयी बनवीर चन्दन को कुँवर उदयसिंह समझकर उसके रक्त से अपनी तलवार को रंजित करके अपने कुत्सित इरादों को पूरा करने का प्रयास करता है । उसकी त्यागमयी, कर्त्तव्यनिष्ठ माँ, पन्ना धाय, देशप्रेम की खातिर अपने ही बेटे की बलि चढ़ा देती है। चन्दन एक स्नेहिल, प्यारा और साहसी बालक है जो एक खरगोश की तरह जमीन से आसमान तक दौड़ना चाहता है।चन्दन एक स्नेहिल ,प्यारा और साहसी बालक है पर काल के क्रूर हाथ उसे असमय ही छीन कर ले जाते हैं और वह केवल एक स्मृति बनकर रह जाता है।
कीरत –
कीरत एक बारी ( सफाई करनेवाला ) है उसकी उम्र ४० वर्ष है राजमहल की साफ़-सफाई करना तथा जूठी पत्तलें उठाना उसका कार्य है ।। वह एक वफ़ादार देशभक्त है। जब पन्ना उसे विश्वास में लेकर बनवीर के षड्यन्त्र की बात बताती है तथा कुँवर उदयसिंह का जीवन बचाने की याचना करती है तो वह तुरन्त मान जाता है। अपने जूठे पत्तलों के बड़े से टोकरे में सोते हुए उदयसिंह को बड़ी सावधानी से लिटाकर बनवीर के सिपाहियों की आँखों में धूल झोंक कर वहमहल के बाहर सुरक्षित निकल जाता है।कीरत बारी ने बड़ी ही बुद्धिमत्ता तथा होशियारी से पन्ना धाय की योजना को पूरा करने में उसकी मदद की। इस प्रकार उसने बनवीर के नापाक इरादों को नाकामयाब कर दिया। अत: कहा जा सकता है कि कीरत बारी एक कर्त्तव्यनिष्ठ, वफ़ादार, बुद्धिमान एवं साहसी व्यक्ति है, जो एक विश्वासपात्र के रूप में पन्ना धाय की मदद करके अपनी स्वामिभक्ति तथा देशप्रेम का परिचय देता है।
सोना –
सोना रावल सरूप सिंह की पुत्री है। वह अत्यन्त रूपवती, चंचल तथा वाक्पटु (बात करने में निपुण) होने के साथ-साथ एक कुशल नृत्यांगना भी है । बनवीर के द्वारा आयोजित ‘दीपदान’ के महोत्सव में वह तुलजा भवानी के समक्ष एक अत्यन्त मनमोहक नृत्य प्रस्तुत करके सबका मन मोह लेती है। कुँवर उदयसिंह भी उसके नृत्य के प्रति आकर्षित हो जाते हैं और धाय माँ पन्ना से उसकी बहुत प्रशंसा करते हैं। वह भ्रमिंत भी है। बनवीर के प्रलोभन के कारण तथा स्वयं भी कुँवर उदयसिंह के प्रति आकर्षित होने के कारण उसे अपने साथ नृत्य दिखाने के लिए ले जाना चाहती है, पर पन्ना उदयसिंह को किसी भ्री षड्यन्त्र का शिकार होने से बचाने के लिए राग-रंग से दूर रखना चाहती है इसलिए वह सोना को मना कर देती है। अत: सोना एक रूपवरती, नटखट, चंचल, बातूनी, लोभी तथा भ्रमित लड़की के रूप में पाठकों के समक्ष आती है ।
सामली –
सामली अन्त:पुर की परिचारिका है। वह एक वफ़ादार तथा समझदार दासी है। वह राजमहल में घट रही हर घटना की जानकारी पन्ना तक पहुँचाती रहती है। वह रा सहायता से ही पन्ना कुँवर उदयसिंह के जीवन की रक्षा करने में सफल हो पाती है। कहा जा सकता है कि सांमली एक स्वामी-भक्त, देशभक्त तथा विश्वासपात्र परिचारिका है जिसने कठिन समय में पन्ना धाय की मदद करके चित्तौड़ के उत्तराधिकारी उदयसिंह के जीवन की रक्षा की ।